अभिमनोज ……..    वरिष्ठ पत्रकार 

भारतीय लोकतंत्र के संघीय ढांचे और विधायी प्रक्रिया के बीच आ रहे टकरावों को लेकर एक ऐतिहासिक संवैधानिक मंथन शुरू होने वाला है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत सुप्रीम कोर्ट से पूछे गए 14 सवाल अब एक बड़ी संवैधानिक बहस का विषय बन गए हैं।इन सवालों का केंद्र बिंदु है- क्या राज्यपाल और राष्ट्रपति विधानसभा से पारित विधेयकों को अनिश्चितकाल तक लंबित रख सकते हैं? क्या वे मंत्रिपरिषद की सलाह से बंधे हैं? क्या सुप्रीम कोर्ट इस प्रक्रिया में हस्तक्षेप कर सकता है?

राज्यपालों की भूमिका पर लगातार उठ रहे सवाल

अनेक राज्यों- विशेषकर गैर-भाजपा शासित राज्यों — जैसे तमिलनाडु, केरल, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, पंजाब और दिल्ली ने अपने राज्यपालों पर आरोप लगाए कि वे विधानसभा से पारित विधेयकों को महीनों-बरसों तक लटकाकर रखते हैं
यह न सिर्फ राज्यों की निर्वाचित सरकारों के लिए बाधा बनता है, बल्कि भारत के संघीय लोकतंत्र की आत्मा पर भी चोट है।

राज्यपालों द्वारा विधानसभा से पारित विधेयकों को मंजूरी देने में हो रही देरी और अनिश्चितता को लेकर पैदा हुए संवैधानिक संकट पर अब भारत का सर्वोच्च न्यायालय व्यापक विचार करेगा। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा पूछे गए 14 महत्वपूर्ण संवैधानिक सवालों पर सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ अगस्त के मध्य से सुनवाई शुरू करेगी। 

यह मामला उस ऐतिहासिक फैसले की पृष्ठभूमि में सामने आया है जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल 2025 को सुनाया था। उस फैसले में कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि राज्यपाल के पास किसी भी विधेयक पर अपने विवेक से निर्णय लेने का अधिकार नहीं है और वे संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत मंत्रिपरिषद की सलाह से बंधे होते हैं। यदि राज्यपाल किसी विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेजते हैं और राष्ट्रपति उस पर कोई निर्णय नहीं लेते, तो राज्य सरकार को यह अधिकार है कि वह सीधे सुप्रीम कोर्ट की शरण ले।

  इस फैसले के बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत सुप्रीम कोर्ट से राय मांगी
यह अनुच्छेद राष्ट्रपति को यह अधिकार देता है कि वे किसी भी “कानूनी या तथ्यगत प्रश्न” पर सुप्रीम कोर्ट से “सलाह” (advisory opinion) ले सकते हैं- विशेष रूप से तब, जब वह प्रश्न सार्वजनिक महत्व का हो  

 राष्ट्रपति ने उठाए 14 बड़े सवाल

राष्ट्रपति मुर्मू ने संविधान के अनुच्छेद 143(1) के अंतर्गत अपने विशेषाधिकार का प्रयोग करते हुए सुप्रीम कोर्ट से 14 संवैधानिक प्रश्न पूछे हैं। यह अनुच्छेद राष्ट्रपति को यह अधिकार देता है कि यदि किसी कानून, तथ्य या मुद्दे पर कोई सार्वजनिक महत्व का प्रश्न हो, तो वह उस पर सर्वोच्च न्यायालय से राय मांग सकते हैं।

राष्ट्रपति द्वारा पूछे गए ये प्रश्न भारतीय संघवाद, विधायिका-कार्यपालिका-संविधान के संबंधों और न्यायपालिका की सीमाओं से जुड़े अत्यंत जटिल मुद्दों को छूते हैं।

कौन-कौन हैं संविधान पीठ में?

इन सवालों की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम न्यायाधीशों की एक संविधान पीठ करेगी, जिसकी अध्यक्षता करेंगे मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई। पीठ में शामिल अन्य जज हैं:

  • जस्टिस सूर्यकांत
  • जस्टिस विक्रम नाथ
  • जस्टिस पीएस नरसिम्हा
  • जस्टिस एएस चंदुरकर

यह पीठ संविधान के उन अस्पष्ट और विवादास्पद प्रावधानों की व्याख्या करेगी जिन पर अब तक कोई निर्णायक टिप्पणी नहीं हुई है।

राष्ट्रपति के 14 संवैधानिक सवालों की झलक:

  1. राज्यपाल को विधेयक प्राप्त होने पर क्या विकल्प उपलब्ध हैं?
  2. क्या इन विकल्पों पर विचार करते समय वे मंत्रिपरिषद की सलाह से बंधे हैं?
  3. क्या अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के फैसले न्यायिक समीक्षा के अधीन हैं?
  4. क्या अनुच्छेद 361 राज्यपाल को न्यायिक समीक्षा से पूर्ण छूट देता है?
  5. क्या कोर्ट राज्यपाल के निर्णयों पर समय-सीमा निर्धारित कर सकता है?
  6. क्या अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति के फैसलों की समीक्षा संभव है?
  7. क्या राष्ट्रपति के निर्णय पर भी समय-सीमा लागू की जा सकती है?
  8. अगर राज्यपाल विधेयक को सुरक्षित रखते हैं, तो क्या कोर्ट की सलाह आवश्यक है?
  9. क्या कोर्ट, इन संवैधानिक पदों द्वारा लिए गए निर्णयों की पहले ही सुनवाई कर सकता है?
  10. क्या सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 142 के तहत राष्ट्रपति और राज्यपाल की शक्तियों को सीमित या परिवर्तित कर सकता है?
  11. क्या राज्यपाल की मंजूरी के बिना राज्य सरकार कोई कानून लागू कर सकती है?
  12. क्या सुप्रीम कोर्ट की कोई भी पीठ संविधान से जुड़े मामलों को संविधान पीठ के पास भेज सकती है?
  13. क्या सुप्रीम कोर्ट ऐसे आदेश दे सकता है जो संविधान या वर्तमान कानूनों से मेल न खाएं?
  14. क्या अनुच्छेद 131 केंद्र और राज्य के विवादों के समाधान के लिए केवल सुप्रीम कोर्ट को ही अधिकार देता है?

 संवैधानिक लोकतंत्र के लिए मील का पत्थर हो सकती है सुनवाई

संविधान पीठ की यह सुनवाई भारत में संघीय ढांचे, कार्यपालिका और न्यायपालिका के संबंधों की प्रकृति को नए सिरे से परिभाषित कर सकती है। यह मामला न केवल संवैधानिक व्याख्या से जुड़ा है, बल्कि राज्यों के विधायी अधिकारों, संघीय संतुलन और लोकतांत्रिक पारदर्शिता पर भी दूरगामी प्रभाव डालेगा।

 संघीय ढांचे पर संभावित प्रभाव

यह मामला सिर्फ विधेयकों की मंजूरी से संबंधित नहीं, बल्कि भारत के केंद्रीय बनाम राज्य अधिकारों के संतुलन का प्रश्न है।

  • यदि सुप्रीम कोर्ट यह मान लेता है कि राज्यपाल निर्णय टाल सकते हैं, तो यह राज्य सरकारों की विधायी स्वतंत्रता का हनन माना जाएगा।
  • यदि कोर्ट यह कहता है कि राज्यपाल केवल “rubber stamp” हैं, तो यह राज्यपाल की संवैधानिक भूमिका को अत्यधिक सीमित कर सकता है।
  • कोर्ट यदि समय-सीमा तय करता है, तो इससे कानून-निर्माण की प्रक्रिया में स्पष्टता और पारदर्शिता आएगी।

 ऐतिहासिक उदाहरण जिनसे यह विवाद जुड़ा है

  • तमिलनाडु बनाम राज्यपाल 2023: जहाँ राज्यपाल ने 12 विधेयकों को बिना कारण बताए वापस कर दिया।
  • पंजाब के राज्यपाल द्वारा बजट प्रस्तुति को रोका गया, जिसे हाईकोर्ट ने “गैर-संवैधानिक” ठहराया।
  • दिल्ली में उपराज्यपाल बनाम मुख्यमंत्री विवाद, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि प्रशासनिक मामलों में उपराज्यपाल मंत्रिपरिषद से बंधे होते हैं।

राजनीतिक प्रतिक्रिया और विशेषज्ञों की राय

कई संवैधानिक विशेषज्ञों जैसे फली नरीमन, गोपाल सुब्रमण्यम, इंदिरा जयसिंह ने इस कदम को स्वागतयोग्य बताया है और कहा है कि यह फैसला भारतीय लोकतंत्र को “रीकैलिब्रेट” करने का अवसर है।
राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया भी आई है:

  • केंद्र सरकार का कहना है कि राष्ट्रपति का यह कदम संवैधानिक मर्यादा के तहत है।
  • विपक्षी दलों ने इसे राज्यों के अधिकारों की रक्षा के लिए आवश्यक बताया।

क्या आएगा नया संवैधानिक संतुलन?

इन सवालों पर सुप्रीम कोर्ट की राय से भारत के राज्यपाल संस्थान की भूमिकाराष्ट्रपति की व्याख्यात्मक शक्तियाँ, और संविधान की मूल संरचना को नई दृष्टि मिलेगी।
यह निर्णय भविष्य की सरकारों, विधानसभाओं और राज्यपालों के संबंधों को परिभाषित करेगा — और यह स्पष्ट करेगा कि भारत का लोकतंत्र सिर्फ चुनावों तक सीमित नहीं, बल्कि संवैधानिक नैतिकता और उत्तरदायित्व पर आधारित है।

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