विजय गर्ग

आज हम तकनीकी रूप से सबसे अधिक जुड़े हुए युग में हैं, परंतु दुखद irony यह है कि हम अपने भीतर के सबसे मौलिक मानवीय गुणों से तेजी से कटते जा रहे हैं—स्पष्ट सोच, गहन अभिव्यक्ति और सार्थक संवाद। स्क्रीन पर स्क्रॉल और स्वाइप की बेताबी में आज की पीढ़ी विचार करने, लिखने और बोलने की मूलभूत क्षमताओं को खोती जा रही है।

यह गिरावट केवल कल्पना नहीं है—यह हमारे स्कूलों की कक्षाओं, कॉलेजों के निबंधों, नौकरी के साक्षात्कारों और यहां तक कि दैनिक संवादों में भी दिखने लगी है। पहले जहां छात्रों को भाषा की बारीकियों में रमने के लिए प्रेरित किया जाता था, आज वे बिना एआई सहायता या उधार लिए गए वाक्यांशों के एक अनुच्छेद तक नहीं लिख पा रहे हैं। शब्द अब हैशटैग में सिमट गए हैं, वाक्य अधूरे रह जाते हैं, और विचार उथले व सतही हो गए हैं।

इस गिरावट का एक बड़ा कारण हमारी “बाइट-साइज़” डिजिटल संस्कृति है। जहां ध्यान कुछ सेकंड तक सीमित है, और सोचने की प्रक्रिया को डोपामाइन आधारित तात्कालिक संतोष ने निगल लिया है। जब स्वत: पूर्ण (Auto-complete) हमारे वाक्य को पूरा कर सकता है, तो विचार के साथ संघर्ष क्यों करें? जब इमोजी काफी है, तो शब्दों का विस्तार क्यों करें?

परंतु यही वह बिंदु है, जहां संकट गहराता है।
लिखना केवल व्याकरण या शब्दों की बाजीगरी नहीं है—यह आत्मनिरीक्षण, धैर्य और अपने ही विचारों से जूझने का साहस है। स्पष्टता से बोलना केवल मुखर होना नहीं, बल्कि यह मन की सजगता और भाषा के प्रति सम्मान की मांग करता है। दुर्भाग्यवश, इन क्षमताओं को विकसित करने वाले आधार—किताबें, बहस, लेखन, मार्गदर्शन—धीरे-धीरे हमारे जीवन से लुप्त हो रहे हैं।

इसका परिणाम अत्यंत गंभीर है।
जब एक पीढ़ी सोचने और खुद को स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त करने की क्षमता खो देती है, तो वह तर्क, संवाद और नेतृत्व—तीनों से दूर हो जाती है। विचार बिना शब्दों के कैद हो जाते हैं, भावनाएं गलत अभिव्यक्त होती हैं, और समाज में भ्रम और विघटन बढ़ता है।

यह लेख तकनीक विरोध नहीं, बल्कि संतुलन की मांग है। यह एक चेतावनी है कि भाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि विचारों की नींव है। हमें नई पीढ़ी को कैप्शन से आगे बढ़कर पढ़ने, पाठ सीमा से परे लिखने, ध्यान से सुनने और सच्चाई से बोलने की प्रेरणा देनी होगी। घरों, स्कूलों और समुदायों को अभिव्यक्ति के केंद्रों में बदलना होगा।

अन्यथा, हम एक ऐसी पीढ़ी को तैयार कर रहे हैं जो उपकरणों में तो दक्ष होगी, पर अपने विचारों और भावनाओं से पूरी तरह कटी हुई होगी।

(लेखक विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्राचार्य, शिक्षाविद एवं शिक्षा विषयों पर नियमित लेखन करने वाले स्तंभकार हैं।)

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