विजय गर्ग ………. सेवानिवृत्त प्रिंसिपल

नई दिल्ली। भारत समेत कई विकासशील देशों से डॉक्टरों और नर्सों का बड़ी संख्या में विदेशों की ओर पलायन जारी है। एक ओर जहां यह प्रवृत्ति विदेशों में बेहतर रोजगार और आर्थिक लाभ की संभावना दर्शाती है, वहीं दूसरी ओर भारत के भीतर स्वास्थ्य सेवाओं पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।

आंकड़ों के अनुसार, इस समय लगभग 75,000 भारतीय डॉक्टर और 6.4 लाख नर्सें दुनिया के विकसित देशों में कार्यरत हैं। ये पेशेवर मुख्यतः ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इन देशों में दक्षिण एशिया और अफ्रीका से आने वाले चिकित्सा पेशेवरों की संख्या 25 से 32 प्रतिशत तक है।

वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्यकर्मियों की कमी
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, 2030 तक दुनिया को करीब 1.8 करोड़ स्वास्थ्यकर्मियों की कमी का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में भारत, फिलीपींस और श्रीलंका जैसे देशों से डॉक्टरों और नर्सों की भारी मांग बनी हुई है। फिलीपींस का उदाहरण उल्लेखनीय है, जहां 85 प्रतिशत से अधिक प्रशिक्षित नर्सें विदेशों में कार्यरत हैं।

कमी झेल रहे हैं स्रोत देश
विशेषज्ञों के अनुसार, जिन देशों से डॉक्टर और नर्स पलायन कर रहे हैं, वहीं देश खुद स्वास्थ्यकर्मियों की गंभीर कमी का सामना कर रहे हैं। भारत में ग्रामीण इलाकों, सरकारी अस्पतालों और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में योग्य डॉक्टरों की भारी कमी बनी हुई है।

पलायन के कारण
पलायन के पीछे आर्थिक कारण, जैसे कि कम वेतन और सीमित करियर अवसर, प्रमुख भूमिका निभाते हैं। इसके अलावा, विकसित देशों की ओर से सक्रिय अंतरराष्ट्रीय भर्ती, द्विपक्षीय समझौते, और बेहतर जीवन-स्तर की चाह भी इस दिशा को प्रबल करती है।

नीतिगत दृष्टिकोण की आवश्यकता
भारत और फिलीपींस जैसे देशों ने विदेशों में कार्यरत स्वास्थ्य पेशेवरों को प्रेषण और वैश्विक साझेदारी के माध्यम से लाभ के स्रोत के रूप में देखा है। हालांकि, विशेषज्ञ मानते हैं कि इससे देश के भीतर की स्वास्थ्य सेवाओं पर असर पड़ता है।
नीतिगत स्तर पर आवश्यक है कि भारत एक केंद्रीकृत एजेंसी की स्थापना करे जो विदेश में कार्यरत स्वास्थ्य पेशेवरों की निगरानी, नियोजन और वापसी प्रक्रिया का प्रबंधन कर सके।

WHO कोड को मान्यता देने की वकालत
स्वास्थ्य विशेषज्ञ यह भी सुझाव देते हैं कि स्रोत और गंतव्य देशों के बीच ऐसे द्विपक्षीय समझौते किए जाने चाहिए, जिनमें प्रशिक्षित कर्मियों की हानि की भरपाई के लिए मुआवजा तंत्र, चिकित्सा शिक्षा में निवेश, और तकनीकी सहयोग जैसी व्यवस्थाएं शामिल हों। WHO द्वारा तैयार कोड ऑफ प्रैक्टिस को ऐसे समझौतों का आधार बनाया जा सकता है।

भारत के लिए चेतावनी और अवसर दोनों
स्वास्थ्य विशेषज्ञ विजय गर्ग के अनुसार, “भारत को यह तय करना होगा कि क्या वह अपने डॉक्टरों और नर्सों को वैश्विक मांग पूरी करने के लिए तैयार करता रहेगा या फिर देश की प्राथमिकता खुद की स्वास्थ्य व्यवस्था को मजबूत बनाना होगी।”

बढ़ती जनसंख्या, गिरती जन्म दर और स्वास्थ्य सेवाओं की बढ़ती मांग को देखते हुए भारत को एक संतुलित रणनीति अपनानी होगी, ताकि वैश्विक साझेदारी के लाभ उठाने के साथ-साथ घरेलू स्वास्थ्य व्यवस्था भी सशक्त हो सके।

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