ट्रंप का ज़बरदस्त आगाज़- मेक अमेरिका ग्रेट अगेन व अमेरिकी फर्स्ट-टेक कंपनियों को चीन में ऑफिस, भारत में कर्मचारियों की भर्ती, मुनाफा आयरलैंड में जमा अब नहीं चलेगा
भारतीयों में अद्भुत बौद्धिक क्षमता,जबरदस्त टैलेंट, जिस कंपनी में सेवाएं देंगे वह सफलताओं के झंडा गढ़ेगी – उनसे अच्छा अवसर हमारा इंतजार कर रहा है
– एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं

ट्रंप का ज़बरदस्त आग़ाज़: ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ और ‘अमेरिकन फर्स्ट’ की वापसी
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर अपने राजनीतिक तेवर और चुनावी एजेंडे को स्पष्ट कर दिया है। 24-25 जुलाई 2025 को वॉशिंगटन डीसी में आयोजित एआई समिट के दौरान ट्रंप ने अमेरिका की प्रमुख टेक कंपनियों (गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, एप्पल, मेटा) से कहा कि वे भारत और चीन से हायरिंग बंद करें तथा अमेरिकी वर्कफोर्स को प्राथमिकता दें।
उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा, “टेक कंपनियाँ भारत जैसे देशों से इंजीनियर हायर कर रही हैं, फैक्ट्रीज़ चीन में लगा रही हैं, और मुनाफा आयरलैंड में जमा कर रही हैं — अब ऐसा नहीं चलेगा।”
भारत-ब्रिटेन एफटीए: वैश्विक अर्थनीति में भारत की छलांग
24 जुलाई 2025 को भारत और ब्रिटेन ने एक ऐतिहासिक फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) पर हस्ताक्षर किए। यह समझौता ब्रेक्ज़िट के बाद ब्रिटेन का यूरोप के बाहर पहला बड़ा व्यापारिक गठबंधन है, जिसमें:
- 90% उत्पादों पर टैरिफ खत्म कर दिए गए।
- श्रमिक गतिशीलता, तकनीकी सहयोग, स्वास्थ्य, शिक्षा, और डिफेंस इन्वेस्टमेंट पर व्यापक प्रावधान हैं।
- भारतीय निवेशकों को वीज़ा प्रक्रियाओं में सरलता और डेटा संरक्षण पर संयुक्त कार्य की गारंटी है।
क्या दोनों घटनाओं का कोई सीधा संबंध है?
क्या ट्रंप का भारत-चीन हायरिंग प्रतिबंध भारत-ब्रिटेन एफटीए का जवाब है?
उत्तर: नहीं।
हालाँकि दोनों घोषणाएं एक ही तारीख (24–25 जुलाई) को हुईं, लेकिन इनका आपसी संबंध केवल काल-संयोग है, कारण-संबंध नहीं। आइए इसे तथ्यों के आधार पर समझें:
तथ्यात्मक विश्लेषण: ट्रंप का आदेश बनाम भारत-ब्रिटेन एफटीए
(1) ट्रंप का घरेलू एजेंडा: 2024 चुनावी हार के बाद वापसी की रणनीति
- ट्रंप की नीति “America First” के अंतर्गत राष्ट्रवाद और संरक्षणवाद है।
- उन्होंने पहले भी 2016-2020 के कार्यकाल में H-1B वीज़ा और आउटसोर्सिंग पर सख्ती की थी।
- यह बयान अमेरिकी बेरोज़गारी, मध्यम वर्ग, और ब्लू कॉलर वोट बैंक को प्रभावित करने का प्रयास है।
(2) टेक कंपनियाँ और आउटसोर्सिंग के केंद्र
- भारत और चीन लंबे समय से अमेरिकी टेक कंपनियों के आउटसोर्सिंग हब रहे हैं।
- TCS, Infosys, HCL जैसी भारतीय कंपनियाँ गूगल, माइक्रोसॉफ्ट को बौद्धिक सेवाएं प्रदान करती हैं।
- ट्रंप की नजर इन सेवाओं को अमेरिकी श्रमिकों से प्रतिस्पर्धा के रूप में देखती है।
(3) ट्रंप के एआई केंद्रित तीन कार्यकारी आदेश
- एआई इन्फ्रास्ट्रक्चर का तेजी से निर्माण
- राजनीतिक तटस्थता की नीति (फेडरली फंडेड एआई पर)
- अमेरिकी एआई उत्पादों का वैश्विक निर्यात बढ़ाना
(4) भारत-ब्रिटेन एफटीए का अमेरिका से कोई सीधा संबंध नहीं
- यह एक द्विपक्षीय समझौता है, जिसमें अमेरिका या अमेरिकी श्रमिकों का कोई पक्ष नहीं है।
- एफटीए से न तो अमेरिकी टेक सेक्टर पर प्रभाव पड़ता है, न ही अमेरिका की GDP को चुनौती मिलती है।
(5) भारत-अमेरिका के रणनीतिक संबंध अलग पटरियों पर चलते हैं
- भारत-अमेरिका संबंध क्वाड, IPEF, 2+2 वार्ता, रक्षा और सुरक्षा सहयोग जैसे मंचों पर मजबूत हैं।
- भारत-ब्रिटेन एफटीए से अमेरिका की भूमिका अप्रभावित रहती है।
क्या ट्रंप का यह कदम रणनीतिक या प्रतिक्रियात्मक है?
निष्कर्षतः, ट्रंप का यह कदम रणनीतिक रूप से चुनावी एजेंडा प्रेरित है, न कि भारत-ब्रिटेन एफटीए का सीधा या परोक्ष जवाब। इसे समझने के लिए हमें निम्न बिंदुओं पर ध्यान देना होगा:
- ट्रंप ने ग्लोबलिस्ट माइंडसेट की आलोचना की — यह उनकी पुरानी लाइन है।
- भारत-ब्रिटेन एफटीए को अमेरिका द्वारा प्रतिद्वंद्वी के रूप में नहीं देखा गया है।
- अमेरिका की बड़ी कंपनियाँ भारत में बौद्धिक श्रम और कम लागत का फायदा उठाती हैं — उन्हें भारत से हायरिंग बंद करना आर्थिक रूप से नुकसानदायक होगा।
- भारत सरकार की ओर से इस बयान पर कोई तीखी प्रतिक्रिया नहीं दी गई, जिससे यह स्पष्ट होता है कि भारत इसे अमेरिका की घरेलू राजनीति मानता है, कूटनीतिक चुनौती नहीं।
भारत का बढ़ता कद: वैश्विक मंच पर आत्मनिर्भरता का संदेश
आज भारत सिर्फ प्रतिभा नहीं, नीति और रणनीति से भी अग्रणी भूमिका निभा रहा है। प्रधानमंत्री की मालदीव यात्रा और “भारत इन” के नारों से लेकर ब्रिटेन के साथ ऐतिहासिक एफटीए तक — भारत ने साबित किया है कि वह विश्व राजनीति का निर्णायक खिलाड़ी बन चुका है।
अतःअगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि,क्या ट्रंप का भारत-चीन श्रम हायरिंग प्रतिबंध भारत-ब्रिटेन एफटीए का जवाब है?उत्तर है: नहीं।यह निर्णय अमेरिका की घरेलू नीति, ट्रंप की चुनावी रणनीति, और “अमेरिकन जॉब्स फॉर अमेरिकन्स” एजेंडे से प्रेरित है। भारत-ब्रिटेन एफटीए का इससे कोई सीधा या परोक्ष संबंध नहीं है।
लेखक परिचय–एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं (सीए एटीसी), गोंदिया महाराष्ट्र
राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय विषयों पर स्तंभकार, चिंतक, लेखक, कवि एवं संगीत माध्यम विश्लेषक