अभिमनोज / वरिष्ठ पत्रकार  एवं साइबर विधि के अध्येता 

वो युवा था, उम्मीदों से भरा। प्रयागराज की गलियों से एक अच्छी नौकरी का सपना लेकर निकला था। वीज़ा, पासपोर्ट और एजेंट के वादों पर भरोसा करके वह विदेश पहुंचा—पर वहां जो मिला, वह नौकरी नहीं, एक बंद कोठरी थी, जहाँ न रौशनी थी, न इंसानियत। यह कोई फिल्मी कहानी नहीं, हकीकत है।

मोहम्मद फहद अंसारी नाम का यह युवक जब भारत लौटा, तो उसके शरीर पर सिर्फ ज़ख्म नहीं थे, बल्कि उसकी आत्मा तक झुलसी हुई थी। वह सिर्फ एक साइबर ठग नहीं था,वह एक ऐसा शिकार था जिसे ज़बरदस्ती साइबर अपराध का औज़ार बना दिया गया था।

वह गया था एक बेहतर भविष्य की तलाश में , लेकिन लौटा तो जैसे एक डिजिटल कारावास की कैद से। प्रयागराज के मोहम्मद फहद अंसारी की यह कहानी न तो कोई अकेली घटना है और न ही किसी फिल्मी पटकथा का हिस्सा। यह उस नवीनतम अपराध चक्र की असलियत है, जिसमें भारत के सैकड़ों युवा आज ‘डिजिटल गुलामी’ के शिकार बन चुके हैं — जहां ना उनके पास पासपोर्ट होता है, ना फोन, और ना ही अपनी मर्ज़ी से सांस लेने की आज़ादी।

2024 से अब तक भारत, नेपाल और बांग्लादेश के हजारों बेरोजगार युवकों को फर्जी जॉब ऑफर्स और सस्ते वीज़ा वादों के नाम पर कंबोडिया, लाओस और म्यांमार ले जाया गया। इन युवाओं को चीनी साइबर गिरोहों द्वारा ऑनलाइन ठगी का हिस्सा बना दिया जाता है, चाहे वह क्रिप्टो स्कैम हो या डेटिंग फ्रॉड। विरोध करने पर होता है शारीरिक उत्पीड़न, भूखा रखा जाना, और जबरन काम कराने की धमकियाँ

फहद का यह सफ़र – प्रयागराज से दिल्ली, फिर बैंकॉक होते हुए नाव द्वारा कंबोडिया – केवल उसका नहीं, बल्कि भारतीय बेरोजगारी, साइबर अपराध और अंतरराष्ट्रीय असंवेदनशीलता की त्रासदी का प्रतिनिधि उदाहरण है।

उसके भागकर लौट आने से न सिर्फ उसकी जान बची, बल्कि उस काले नेटवर्क की परतें भी खुलने लगीं, जो भारत जैसे विकासशील देशों के युवाओं को ‘डिजिटल गुलामी’ की ओर धकेल रहा है।

प्रयागराज की लोकल मीडिया में आई यह खबर अब पूरे सिस्टम पर सवाल उठा रही है,क्या हमारी बेरोजगारी और लापरवाही किसी साजिश में बदल चुकी है? क्या हर फ्लाइट विदेश नहीं, गुलामी की गहराई में जा रही है?

भागे तो बचे, बोले तो खुली सच्चाई

प्रयागराज के मोहम्मद फहद अंसारी की आपबीती ने एक ऐसा घाव उजागर किया है, जिसकी पीड़ा न सिर्फ उसके शरीर पर है, बल्कि आत्मा तक को झकझोर देती है। प्रयागराज के स्थानीय अखबारों में छपी खबरों के अनुसार, वह युवक रोजगार के नाम पर कंबोडिया ले जाया गया, जहां उसे ‘साइबर गुलाम’ बनाकर अमानवीय यातनाएं दी गईं। लेकिन जब वह किसी तरह वहां से भागा और भारत लौटा, तब जाकर वह स्याह परतें उजागर हो पाईं, जिन्हें अब तक दबाया गया था।

विदेश में नौकरी का सपना, साइबर अपराध का जाल

एसीपी करेली और डीसीपी सिटी अभिषेक भारती के बयानों के अनुसार बेरोजगारी से जूझते युवकों को ‘विदेश में नौकरी’ का सपना दिखाकर एजेंट्स उन्हें सस्ते रास्ते से कंबोडिया, लाओस, थाईलैंड जैसे देशों में भेज रहे हैं। वीज़ा और दस्तावेज वैध होते हैं, लेकिन इरादे आपराधिक।

संगठित ट्रैफिकिंग मॉड्यूल

इस पूरी प्रक्रिया में दो देशीय नहीं, बहुस्तरीय नेटवर्क काम करता है:

  • भारत में एजेंट
  • म्यांमार और थाईलैंड में ट्रांजिट हैंडलर
  • कंबोडिया में रिसीवर गिरोह
  • और चीन से निर्देशित साइबर ऑपरेटर

फहद ने खुलासा किया कि उसे प्रयागराज से दिल्ली, दिल्ली से बैंकॉक, वहां से म्यांमार और अंततः नाव से अवैध रास्ते से कंबोडिया ले जाया गया। यहाँ चीनी ऑपरेटरों ने उसे एक बड़े साइबर फ्रॉड ऑपरेशन का हिस्सा बना दिया।

साइबर गुलामी के तरीके

जैसे ही वह वहां पहुंचा, उसका पासपोर्ट और मोबाइल जब्त कर लिया गया। मोबाइल को पूरी तरह फॉर्मेट कर दिया गया ताकि किसी से संपर्क न हो सके।

कॉल सेंटर में काम के नाम पर उन्हें चीनी नागरिकों द्वारा दिए गए डेटा के आधार पर ऑनलाइन ठगी करवानी होती थी। फर्जी ईमेल, फेक वेबसाइट्स, और नकली निवेश स्कीमों के जरिए विदेशी नागरिकों से पैसे ठगे जाते थे। यह सब एक सुनियोजित मॉड्यूल के तहत होता था।

प्रतिरोध का मतलब था यातना

कई युवा, जैसे फहद, जब काम करने से इनकार करते या भारत लौटने की मांग करते, तो उन्हें खाना बंद कर दिया जाता, अंधेरे कमरों में बंद किया जाता और कभी–कभी बिजली के झटके तक दिए जाते।

जब भागकर लौटे, तब शुरू हुई लड़ाई

कुछ युवकों ने स्थानीय नागरिकों की मदद से किसी तरह पुलिस तक पहुंचने का रास्ता बनाया। वहीं से भारतीय दूतावास को सूचित किया गया। एक लंबी कूटनीतिक प्रक्रिया के बाद भारत सरकार ने उन्हें स्वदेश लौटवाया।

एजेंट गिरोह का भंडाफोड़

प्रयागराज पुलिस ने ‘शीबू’ नामक एजेंट को गिरफ्तार किया है। यह वही एजेंट है जो पहले सऊदी अरब भेजने का झांसा देता था, अब कंबोडिया जैसे देशों को नया केंद्र बना चुका था। उसकी गिरफ्तारी से खुलासा हुआ है कि प्रयागराज, लखनऊ, और दिल्ली में फैला हुआ यह गिरोह सैकड़ों युवाओं को ‘नौकरी’ के नाम पर बेच चुका है।

भारत सरकार की भूमिका और सीमाएं

भले ही सरकार ने तत्परता से कुछ युवाओं को वापस लाया हो, लेकिन पूर्व-रोकथाम तंत्रएयरपोर्ट पर एजेंट मॉनिटरिंग, और श्रम मंत्रालय की निगरानी लगभग नगण्य है। यही कारण है कि हर महीने दर्जनों युवकों को शिकार बनाया जा रहा है।

 यह वैश्विक साइबर जाल है

आज चीन के इशारे पर चल रहे ये गिरोह दक्षिण एशिया के युवाओं को डार्क वेब पर काम करवाने, क्रिप्टो फ्रॉडडेटा चोरी, और फिशिंग स्कैम जैसे अपराधों में झोंक रहे हैं। और सबसे दर्दनाक यह है कि इन युवाओं का आपराधिक रिकॉर्ड बन जाता है, जबकि असली अपराधी छिपे रहते हैं।

 डिजिटल गुलामी कैसे होती है संचालित?

1. एजेंट नेटवर्क
देश में बेरोजगार युवाओं को शिकार बनाने वाले स्थानीय एजेंट सस्ते में विदेश नौकरी दिलाने का वादा करते हैं। यह ‘वर्क वीज़ा स्कैम’ के नाम पर वैध प्रतीत होता है।

2. अंतरराष्ट्रीय ट्रैफिकिंग रूट
भारत → थाईलैंड → म्यांमार → कंबोडिया या लाओस। पासपोर्ट जब्त कर लिए जाते हैं, और पीड़ितों को डिजिटल डिटेंशन में रखा जाता है।

3. साइबर ठगी का ढांचा
चीनी नेटवर्क के निर्देश पर ये युवक फर्जी वेबसाइट, क्रिप्टो स्कैम, फेक डेटिंग प्रोफाइल, और नकली ऐप्स के ज़रिए अमेरिका, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया के नागरिकों से पैसे ठगते हैं।4. प्रताड़ना और नियंत्रणफिजिकल टॉर्चरडिजिटल ब्लैकमेलिंग24×7 निगरानीमानसिक दबाव और दवाइयों का इस्तेमाल

 भारत और दक्षिण एशिया से जुड़े आँकड़े

2023-2024: 8,000 से अधिक युवाओं को कंबोडिया और लाओस में बंधक बनाए जाने के मामले सामने आए500+ भारतीय नागरिक ऐसे स्कैम कॉल सेंटर से छुड़ाए गए20+ एजेंट भारत में गिरफ्तार, लेकिन गिरोह अभी भी सक्रिय(स्रोत: इंटरपोल, UNODC, इंडियन मिशन फाइल्स)

अब तक की कार्रवाई

मामला दर्ज: प्रयागराज पुलिस ने IPC, BNS और मानव तस्करी एक्ट के तहत एफआईआर दर्ज कीगिरफ्तारी: एजेंट ‘शीबू’ गिरफ्तार, उसके मोबाइल से 7 और पीड़ितों की जानकारी मिलीविदेश मंत्रालय की भूमिका: MEA और Indian Embassy in Phnom Penh ने संयुक्त ऑपरेशन के तहत 34 युवकों की वतन वापसी करवाईकेवल रेस्क्यू नहीं, रिवर्स इंजीनियरिंग की ज़रूरत

यह मामला सिर्फ एक अपराध की कहानी नहीं है, यह एक सामाजिक और राजनीतिक चेतावनी है।जब सरकार डिजिटल इंडिया कहती है, तब उसे ‘डिजिटल गुलामी’ के विरुद्ध भी कानून लाने होंगे।केवल विदेश मंत्रालय नहीं, रोजगार मंत्रालय और NIA जैसे एजेंसियों को एक साथ काम करना होगा।फंसे युवाओं को सिर्फ छुड़ाना नहीं, उनका साइकोलॉजिकल रिहैबिलिटेशन भी अनिवार्य है।

पाठकों के लिए सावधानी

विदेश जाने से पहले सरकार की वेबसाइट (emigrate.gov.in) पर नियोक्ता व वीज़ा की जांच करेंRT-PCR के जैसे जांचें:
एजेंट रजिस्टर्ड है या नहीं
 जॉब ऑफर लेटर की सत्यता
वर्क वीज़ा का प्रकार और वैधता
इमिग्रेशन मंज़ूरी दस्तावेज़यदि आपके क्षेत्र में कोई व्यक्ति विदेश नौकरी के लिए संदिग्ध एजेंट से संपर्क में है, तो तुरंत स्थानीय पुलिस, विदेश मंत्रालय या Cyber Crime Helpline 1930 पर सूचित करें।

यह कहानी सिर्फ एक फहद अंसारी की नहीं है। यह उस सामाजिक अंधेरे की कहानी है, जहां गरीबी, बेरोजगारी और लालच के बीच हमारे सपनों को चुरा लिया जाता है। आज यह ‘साइबर गुलामी’ है—कल यह कुछ और होगा। समय है कि हम इस सच्चाई को नजरअंदाज करने के बजाय उसे सीधे आँखों में देखें।

क्योंकि अगली फ्लाइट में शायद कोई और ‘फहद’ बैठा हो—जो यह नहीं जानता कि वह काम पर नहीं, कैद में जा रहा है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार  एवं साइबर विधि के अध्येता हैं।) 

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