आचार्य डॉ. महेन्द्र शर्मा ‘महेश’

श्रावण शुक्ल सप्तमी — 31 जुलाई 2025
???? सियाराममय विश्व की मंगल कामना ????

“जाके प्रिय न राम बैदेही,
छाड़िए ताहि कोटि बैरी सम, जद्यपि परम सनेही।”

“तज्यो पिता प्रह्लाद, विभीषण बंधु, भरत महतारी कंत ब्रज बनितन।
भय मुद मंगलकारी।।”

???? जिन्हें राम और सीता प्रिय नहीं, उन्हें चाहे वह कितना भी अपना क्यों न हो, त्याज्य समझना चाहिए। यही नीति, यही मर्यादा, यही संकल्प ही तो रामकथा और मानस की आत्मा है — और इसे जीवन में उतारने वाले महापुरुष थे गोस्वामी तुलसीदास जी

???? श्री गोस्वामी तुलसीदास जी का प्राकट्य संवत् 1554 में श्रावण शुक्ल सप्तमी के दिन उत्तर प्रदेश के बांदा (चित्रकूट) जिले के राजापुर ग्राम में हुआ। वह गण्डमूल नक्षत्र में जन्मे, 12वें मास के गर्भ के पश्चात, मुख में दाँत और ‘राम’ नाम के उच्चारण के साथ प्रकट हुए — इसीलिए उनका नाम पड़ा रामबोला

माता-पिता के स्नेह से वंचित इस बालक का पालन-पोषण प्रारंभ में एक दासी ‘चुनिया’ ने किया, जो पांच वर्ष की आयु में चल बसी। तब प्रकृति स्वयं ब्राह्मणी का रूप लेकर इस दिव्य आत्मा की रक्षा करती रही। बाद में स्वामी नरहर्यानंद जी ने उन्हें अयोध्या ले जाकर उपनयन संस्कार कराया, जहां बिना सिखाए ही रामबोला ने गायत्री मंत्र का जप प्रारंभ कर दिया।

गोस्वामी तुलसीदास न केवल एक संत कवि थे, बल्कि श्रद्धा, विश्वास, ज्ञान, भक्ति और पूर्ण समर्पण के प्रतीक थे। उनके द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस भारतीय संस्कृति का अमूल्य ग्रंथ है, जो केवल एक धर्मग्रंथ नहीं, बल्कि एक जीवन-संहिता है।

उन्होंने सिखाया —

“पूजहिं विप्र जो वेद विहीना।
शुद्र न गनिअ जो श्रुति पठीना।।”

जिसका भाव यह है कि सदाचारी और ईश्वर के प्रति समर्पित व्यक्ति वंदनीय है, भले ही वह शास्त्रज्ञ न हो। वहीँ, यदि कोई विद्वान होकर भी दुर्व्यवहारी और अहंकारी है, तो वह निंदनीय है।

आज के युग में तुलसीदास जी की प्रासंगिकता

जब समाज में अराजकता, उग्रवाद, लंपटता, स्त्री-अत्याचार, और नैतिक पतन फैल रहा है, तब गोस्वामीजी का जीवनदर्शन ही है, जो रामराज्य की कल्पना को साकार कर सकता है।

मानव जीवन में यदि तीन चौपाइयाँ भी उतार लें, तो समाज पुनः राममय हो जाएगा:

प्रातःकाल उठि कर रघुनाथा,
मातु-पिता गुरु नावहिं माथा।

संग सखा सन भोजन करहिं,
मातु-पिता आज्ञा अनुसरहिं।

आयसु मांगि करहिं पुर काजा,
देख चरित हरषई मनि राजा।।

संस्कृति की रक्षा का संकल्प

सनातन धर्म पर हुए आघातों के बीच, ब्राह्मणों और संत महापुरुषों ने श्रुति और स्मृति पर आधारित परंपरा को जीवित रखा। व्याकरण से अधिक श्रद्धा और भक्ति का महत्व गोस्वामी जी ने स्वयं दर्शाया।

काशी के मणिकर्णिका घाट पर गीता के श्लोकों का अशुद्ध उच्चारण कर रहे एक वृद्ध ब्राह्मण को जब चैतन्य महाप्रभु ने व्याकरण सीखने की सलाह दी, तो ब्राह्मण ने कहा —

“मैं तो वही गा रहा था, जो भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कहा… यदि इसके लिए एक और जन्म लेना पड़े, तो वह भी स्वीकार है।”

यह भाव ही श्रद्धा और भक्ति की पराकाष्ठा है।

उपासना के दोनों रूप — साकार और निराकार

आज, जब ईश्वर-भक्ति भी केवल मनोरंजन, गीत-संगीत और प्रदर्शन तक सिमट रही है, तब गोस्वामी तुलसीदास की वाणी हमें आचरण, मर्यादा, सेवा और संयम की ओर लौटने की प्रेरणा देती है।

“जहाँ अकबर ने भूमि पर कुछ समय तक राज्य किया, वहीं तुलसीदास जी आज भी हमारे मन और मानस पर राज्य कर रहे हैं — और करते रहेंगे।”

528वीं जयंती पर संकल्प

आइए, इस गोस्वामी तुलसीदास जयंती पर हम यह संकल्प लें कि —

  • अपने परिवार में रामायण को जीवनशैली बनाएं।
  • बच्चों को पौराणिक चरित्रों से जोड़ें।
  • श्रद्धा, सेवा, संयम और भक्ति को अपने जीवन का आधार बनाएं।
  • और अंततः —

“हर श्वास में राम नाम का गायन हो,
हर कर्म में राम की मर्यादा का अनुकरण हो।”

????️ श्री गोस्वामी तुलसीदास जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं ????️

???? “श्रद्धा, विश्वास, और भक्ति के अमर स्तंभ को नमन!” ????

???? निवेदक –
श्री गुरु शंकराचार्य पदाश्रित
आचार्य डॉ. महेन्द्र शर्मा ‘महेश’
श्री विद्युत्प्रभा शास्त्री वैदिक ज्योतिष संस्थान, पानीपत

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