रेवाड़ी, 3 अगस्त 2025 – हरियाणा में जमीन के कलेक्टर रेट में 10 से लेकर 130 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी को लेकर प्रदेश की भाजपा सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए स्वयंसेवी संस्था ग्रामीण भारत के अध्यक्ष वेदप्रकाश विद्रोही ने कहा है कि यह निर्णय आम जनता के लिए घर बनाने के सपनों को और महंगा करने वाला ‘गिफ्ट’ है।

विद्रोही ने कहा कि रेवाड़ी जिले सहित पूरे प्रदेश में ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों की जमीनों के कलेक्टर रेट में 10 से 50 प्रतिशत तक की वृद्धि की गई है, जबकि कई अन्य जिलों में यह बढ़ोतरी 130 प्रतिशत तक जा पहुँची है। इससे जमीन व संपत्ति की रजिस्ट्री पर देय स्टांप ड्यूटी बढ़ेगी और लोगों की जेब पर सीधा असर पड़ेगा।

उन्होंने कहा कि पहले ही निर्माण सामग्री—जैसे पत्थर, बजरी और रेत की रॉयल्टी लगभग दोगुनी हो चुकी है, ऊपर से अगर कोई यह सामग्री हरियाणा से बाहर से मंगवाता है तो उस पर अतिरिक्त टैक्स लगाया गया है। ऐसे में एक आम व्यक्ति के लिए घर बनाना अब 25 से 30 प्रतिशत तक महंगा हो जाएगा।

विद्रोही ने आरोप लगाया कि हरियाणा में भाजपा की तीसरी बार सरकार बनने के बाद पिछले दस महीनों में प्रदेश की जनता पर किसी न किसी बहाने आर्थिक बोझ डाला जा रहा है। उन्होंने कहा कि भाजपा ने जो चुनावी वादे किए थे, उन्हें या तो सिर्फ कागजों तक सीमित रखा गया है, या फिर आधे-अधूरे रूप में लागू किया गया है।

उन्होंने सरकार पर लोगों को “ठगने और उनकी जेब काटने” का आरोप लगाते हुए कहा कि भाजपा वादे पूरे करने से भाग रही है और जनता पर महंगाई थोपने का काम कर रही है।

राजनीतिक वादे और ज़मीनी हकीकत

भारत सारथी विशेष विश्लेषण

हरियाणा में तीसरी बार बनी भाजपा सरकार ने चुनाव पूर्व जनता से अनेक वादे किए थे — जैसे सस्ती दरों पर आवास, रोजगार के अवसर, किसानों को राहत, युवाओं को शिक्षा और स्वरोजगार के लिए योजनाएँ। लेकिन पिछले दस महीनों में सरकार के फैसलों ने इन वादों की हकीकत को कठघरे में खड़ा कर दिया है।

1. महंगे सपनों का बोझ:
कलेक्टर रेट में वृद्धि और निर्माण सामग्री की महंगी दरें इस ओर इशारा करती हैं कि सरकार की प्राथमिकता ‘आवासीय सुविधा’ नहीं बल्कि राजस्व बढ़ाना है। आमजन, जो पहले से ही महंगाई और बेरोजगारी से जूझ रहा है, अब घर बनाने की सोच भी नहीं पा रहा।

2. आधे-अधूरे वादों की हकीकत:
चुनाव से पहले किए गए वादों में से कई सिर्फ घोषणाओं तक सीमित रह गए हैं। जैसे—किसानों की आय दोगुनी करने का दावा आज भी आंकड़ों की बाज़ीगरी से बाहर नहीं निकल पाया। युवाओं को नौकरी देने के बजाय रोजगार पाने के रास्ते और महंगे कर दिए गए हैं।

3. बढ़ती वित्तीय असमानता:
सरकारी नीतियाँ आर्थिक रूप से पहले से ही सक्षम वर्ग को और सक्षम बना रही हैं, जबकि मध्यमवर्ग और निम्न वर्ग पर करों, शुल्कों और टैक्स का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है।

4. ज़मीन से जुड़ी नीतियों का दोहरा असर:
एक ओर सरकार औद्योगिक विकास के लिए जमीन अधिग्रहण को बढ़ावा दे रही है, दूसरी ओर आम नागरिक को अपनी छोटी सी जमीन पर मकान बनाने के लिए रजिस्ट्रेशन, स्टाम्प ड्यूटी, और निर्माण लागत के भारी बोझ से जूझना पड़ रहा है।

निष्कर्ष:
भाजपा सरकार की आर्थिक नीतियाँ और ज़मीन से जुड़े फैसले यह दर्शाते हैं कि ‘सबका साथ, सबका विकास’ का नारा अब महज राजनीतिक जुमला बनता जा रहा है। जनता को ज़रूरत है नीतिगत पारदर्शिता, जनसुलभ आवास नीति और ज़मीनी वादों की सच्ची क्रियान्विति की।

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