भारत के लिए चुनौती:- अमेरिका के आगे झुकना नहीं, संबंध तोड़ना नहीं, सम्मान को छोड़ना नहीं 

अमेरिका व यूरोपीय यूनियन द्वारा रुस पर लगाए प्रतिबंधों के बावजूद प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से ऊर्जा खरीद रहे हैं तो भारत के साथ ऐसा बर्ताव क्यों?

– एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं

एक वैश्विक उथल-पुथल के केंद्र में भारत
 गोंदिया महाराष्ट्र-अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में भारत को रूस से तेल खरीदने पर सख्त चेतावनी दी है कि अगर यह जारी रहा तो अमेरिका अगले 24 घंटे में भारत पर भारी टैरिफ लगा देगा। यह धमकी ऐसे समय आई है जब भारत वैश्विक मंच पर अपनी रणनीतिक स्वायत्तता और आर्थिक आत्मनिर्भरता की नीति-भारत फर्स्ट -को मज़बूती से आगे बढ़ा रहा है।

यह विवाद केवल एक व्यापारिक नीति की बात नहीं है, बल्कि यह भारत की रणनीतिक स्वायत्तता, ऊर्जा सुरक्षा और विदेश नीति की स्वतंत्र सोच के सामने सीधी चुनौती है। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि भारत न झुके, न टकराए, बल्कि सम्मान, बुद्धिमत्ता और राष्ट्रहित को प्राथमिकता देकर आगे बढ़े।

अमेरिका की धमकी: भारत के लिए नई चुनौती या पुरानी रणनीति?
डोनाल्ड ट्रंप की “मेक अमेरिका ग्रेट अगेन” और “अमेरिका फर्स्ट” की नीति का असली चेहरा अब दुनिया के सामने स्पष्ट हो चुका है। उनके द्वारा चीन, कनाडा, यूरोपीय यूनियन और अब भारत जैसे देशों पर टैरिफ के जरिए दबाव बनाना इसी नीति का हिस्सा है।

भारत को 1 अगस्त 2025 को 25% टैरिफ की धमकी मिली, जिसे 7 अगस्त तक टाल दिया गया। फिर 5 अगस्त को ट्रंप ने सीधे भारत को रूस से तेल खरीदने पर युद्ध फंडिंग का आरोप लगाया और कहा कि भारत को 24 घंटे में इसकी कीमत चुकानी होगी। यह बयान केवल एक चेतावनी नहीं बल्कि भारत की नीतिगत संप्रभुता को चुनौती थी।

 विरोधाभास: क्या अमेरिका और यूरोपीय यूनियन खुद पाक साफ हैं?
ट्रंप भारत पर यह आरोप लगा रहे हैं कि वह रूस से सस्ता तेल खरीद कर उसे महंगे दाम पर बेचता है और इस तरह युद्ध को फंड करता है। परंतु यहीं एक गहरा विरोधाभास है।

  1. अमेरिका खुद दुनिया का सबसे बड़ा तेल निर्यातक बन चुका है
  2. यूरोपीय यूनियन 2024 में ही अमेरिका से €76 बिलियन की ऊर्जा (एलएनजी, कोयला, पेट्रोलियम) खरीद चुका है
  3. यूरोस्टैट के अनुसार 2024 में ईयू ने रूसी तेल के विकल्प के रूप में अमेरिका से बड़ी मात्रा में ऊर्जा खरीदी

इसलिए जब अमेरिका और ईयू खुद ऊर्जा आपूर्ति के लिए लाभ कमा रहे हैं, तो भारत को अकेला निशाना बनाना दोहरे मापदंड को दर्शाता है।

भारत की तेल नीति: आत्मनिर्भरता और संतुलन की राह
जनवरी-जून 2025 के दौरान भारत की कुल तेल खपत का लगभग 36-40% हिस्सा रूस से आया। वहीं भारत ने अमेरिका से भी क्रूड ऑयल आयात को 32% बढ़ाया। यह दिखाता है कि भारत एक संतुलित नीति पर चल रहा है और केवल रूस पर निर्भर नहीं है।

भारत की ऊर्जा नीति का आधार है – ऊर्जा सुरक्षा, कीमत स्थिरता और रणनीतिक भिन्नता। भारत एक विकासशील राष्ट्र होने के नाते सस्ते और स्थिर ऊर्जा स्रोतों की जरूरत रखता है, ताकि उसका औद्योगिक और आर्थिक विकास सुचारु बना रहे।

टैरिफ की धमकी और संभावित असर
ट्रंप की चेतावनी कि भारत पर 50%, 100% या उससे भी अधिक टैरिफ लगाया जा सकता है, केवल एक व्यापारिक विवाद नहीं, बल्कि भारत-अमेरिका द्विपक्षीय संबंधों को गहराई से प्रभावित कर सकता है।

  • अमेरिकी कांग्रेस में “Sanctioning Russia Act of 2025” पर चर्चा चल रही है, जिसमें भारत जैसे देशों पर 500% सेकेंडरी टैरिफ लगाने की अनुमति दी जा सकती है।
  • रेटिंग एजेंसियों का आकलन है कि इससे भारत को $7-18 बिलियन का वार्षिक नुकसान हो सकता है।
  • तेल लागत में ~$11 बिलियन तक का इज़ाफा संभव है।
  • जीडीपी में लगभग 0.2% गिरावट का अनुमान है।

परंतु इसके बावजूद भारत की नई उद्यमशीलता नीति, स्टार्टअप संस्कृति, बुनियादी आर्थिक ढांचा और वैश्विक निवेश आकर्षण में विश्वास बना हुआ है।

 क्या अमेरिका भारत की रणनीतिक स्वायत्तता को नज़रअंदाज़ कर रहा है?
भारत न केवल एशिया बल्कि वैश्विक मंच पर अब एक निर्णायक शक्ति बनकर उभरा है। अमेरिका द्वारा एकतरफा दबाव, विशेष रूप से तब जब वे खुद भी ऊर्जा व्यापार में व्यस्त हैं, भारत की रणनीतिक स्वायत्तता पर प्रश्नचिह्न लगाता है।

भारत अब वो देश नहीं रहा जो दबाव में आकर नीति बदले। वह अपने हितों और वैश्विक शांति की आवश्यकता को ध्यान में रखकर संतुलित, विवेकपूर्ण और दृढ़ निर्णय लेता है।

राजनीतिक संतुलन और भारत की भूमिका
डोनाल्ड ट्रंप की दृष्टि से भारत को चीन और पाकिस्तान के समकक्ष रखना, कूटनीतिक दृष्टि से अनुचित है। भारत एक लोकतांत्रिक, स्थिर और विश्वसनीय साझेदार रहा है।

भारत के लिए विकल्प हैं:

  • ट्रंप की मांग मानकर तात्कालिक राहत ले, लेकिन दीर्घकालिक रणनीतिक नुकसान झेले।
  • या राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखते हुए, अपनी नीति, सम्मान और ऊर्जा सुरक्षा की रक्षा करे, भले ही कुछ कठिनाइयाँ आएं।

भारत सरकार का “भारत फर्स्ट” विज़न और विजन 2047 लक्ष्य यहीं से शुरू होता है – आत्मनिर्भर भारत जो अपने फैसले स्वयं ले।

निष्कर्ष: ट्रंप की धमकी बनाम भारत की गरिमा और नीति
यदि हम पूरे घटनाक्रम और तथ्यों का विश्लेषण करें, तो साफ है कि भारत एक अत्यधिक संतुलित, दृढ़ और जिम्मेदार विदेश नीति का पालन कर रहा है। ट्रंप की टैरिफ धमकी अल्पकालिक राजनीतिक बयानबाजी है, जिसका उद्देश्य केवल घरेलू चुनावी राजनीति और अमेरिका फर्स्ट ब्रांड को बढ़ावा देना है।

भारत को चाहिए:

  • अमेरिकी धमकियों को शांति, समझदारी और आत्मगौरव के साथ टालना।
  • वैश्विक मंच पर द्विपक्षीय समर्थन मजबूत करना।
  • ऊर्जा स्रोतों में बहुविकल्पीय रणनीति अपनाना।
  • WTO जैसे मंचों पर टैरिफ दबाव का विरोध करना।

क्योंकि आज का भारत अपने सम्मान, अपने निर्णय और अपने राष्ट्रहित को सर्वोपरि मानता है।

लेखक परिचय:एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी विशेषज्ञ स्तंभकार | साहित्यकार | अंतरराष्ट्रीय चिंतक | सीए (एटीसी) गोंदिया, महाराष्ट्र

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