“रक्षाबंधन” यह पर्व भाई-बहन के अटूट प्रेम, विश्वास और सुरक्षा के रिश्ते का प्रतीक है-युवाओं को त्योहारों का महत्व समझाने की ज़रूरत।

आज खुशी के दिन भाई के भर भर आए नैना, कदर बहन की उनसे पूछो जिनकी नहीं है बहना ,रक्षाबंधन की बधाईयां

-एडवोकेट किशन सनमुखदास

गोंदिया महाराष्ट्र- रक्षाबंधन केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि भाई-बहन के अटूट प्रेम, विश्वास और सुरक्षा के रिश्ते का प्रतीक है। इस दिन भाई-बहन एक-दूसरे के प्रति अपने स्नेह और वचन को नए सिरे से मजबूत करते हैं। जैसा कि कहा जाता है—

“आज खुशी के दिन भाई के भर-भर आए नैना, कदर बहन की उनसे पूछो जिनकी नहीं है बहना।”

सांस्कृतिक पृष्ठभूमि और फिल्मी यादें

भारत में रक्षाबंधन की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यह भारतीय फिल्म संगीत में भी अमर हो चुका है।

  • 1959 की फिल्म छोटी बहन का गीत “भैया मेरे, राखी के बंधन को निभाना”
  • 1971 की फिल्म बेईमान का गीत “ये राखी बंधन है ऐसा”
    आज भी राखी के मौसम में बाजारों में गूंजते हैं और त्योहार की भावनाओं को और गहरा कर देते हैं।

इस वर्ष का विशेष ज्योतिषीय संयोग

9 अगस्त 2025 का रक्षाबंधन 95 साल बाद एक दुर्लभ योग लेकर आ रहा है:

  • सौभाग्य योग
  • सर्वार्थ सिद्धि योग
  • श्रवण नक्षत्र
    इसके साथ ही इस बार भद्रा काल का साया नहीं होगा, जिससे राखी बांधने का समय और भी शुभ बन गया है।

बदलते समय में त्योहारों की अहमियत

लेखक का व्यक्तिगत विचार है कि आज की युवा पीढ़ी त्योहारों की पारंपरिक गरिमा को पहले जैसा नहीं समझ पा रही। डिजिटल युग में ऑनलाइन संवाद ने व्यक्तिगत मुलाकातों का स्थान ले लिया है, जबकि भारतीय संस्कृति में त्योहारों का समयानुसार और व्यक्तिगत रूप से मनाना विशेष महत्व रखता है।

रक्षाबंधन: परंपरा और पौराणिक महत्व

रक्षाबंधन हर साल श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है।

  • बहन भाई की कलाई पर राखी बांधती है और उसकी लंबी उम्र व सुख की कामना करती है।
  • भाई बहन की रक्षा का वचन देकर उपहार देता है।

पौराणिक कथाएँ:

  • इंद्राणी द्वारा इंद्र को रक्षा सूत्र बांधना।
  • द्रौपदी द्वारा कृष्ण को राखी बांधना और कृष्ण द्वारा द्रौपदी की लाज बचाना।

भारत में क्षेत्रीय विविधताएँ

रक्षाबंधन केवल भाई-बहन का पर्व नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक विविधता का उत्सव है।

  • उत्तर भारत: विशेष पकवान, पारंपरिक रस्में, परिवारिक मिलन।
  • राजस्थान: ‘लांबा’ राखी जो सिर पर बांधी जाती है।
  • महाराष्ट्र: नारली पूर्णिमा, समुद्र देवता को नारियल अर्पित करना।
  • बंगाल: झूलन पूर्णिमा, राधा-कृष्ण की झांकी और झूला उत्सव।
  • हिमालयी राज्य: लोकगीतों और नृत्यों के साथ राखी मनाना।

आधुनिक परिप्रेक्ष्य और डिजिटल युग

आज रक्षाबंधन का रूप बदल रहा है:

  • वीडियो कॉल और ऑनलाइन राखी भेजना।
  • भाई-भाभी दोनों को राखी बांधने की प्रथा।
  • बहनों द्वारा सैनिकों को राखी भेजना, जो राष्ट्रीय एकता का संदेश देता है।

सामाजिक और आर्थिक पक्ष

  • यह पर्व सामाजिक एकता और नारी सम्मान को प्रोत्साहित करता है।
  • आर्थिक दृष्टि से मिठाई उद्योग, राखी निर्माण, गिफ्ट बाजार और कूरियर सेवाओं के लिए यह सीजन लाखों-करोड़ों का व्यापार लाता है।
  • महिला स्व-सहायता समूहों द्वारा बनाई गई हस्तनिर्मित राखियाँ महिलाओं के लिए रोजगार का साधन हैं।

अतःअगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन करें इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि रक्षाबंधन 9 अगस्त 2025 केवल एक पर्व नहीं, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक विरासत का वैश्विक उत्सव है। यह भाई-बहन के पवित्र बंधन को और मजबूत करने का अवसर है। युवाओं के लिए यह संदेश है कि त्योहारों की वास्तविक गरिमा और परंपरा को जीवित रखें, क्योंकि जब तक यह संबंध जीवित है, समाज में प्रेम, एकता और सुरक्षा का भाव भी जीवित रहेगा।

-संकलनकर्ता लेखक:क़र विशेषज्ञ, स्तंभकार, साहित्यकार, अंतरराष्ट्रीय लेखक, चिंतक, कवि, संगीत माध्यम, सीए (एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र

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