विजय गर्ग

भारतीय समाज में एक समय था जब शादी को महिला के जीवन का अंतिम लक्ष्य और सुरक्षा का आधार माना जाता था। लेकिन अब तस्वीर बदल रही है—शिक्षित, आत्मनिर्भर और महत्वाकांक्षी महिलाएं शादी में देरी कर रही हैं या सिंगल रहने का विकल्प चुन रही हैं।
1. शिक्षा और करियर पहले
- महिलाएं अब उच्च शिक्षा और पेशेवर सफलता को प्राथमिकता देती हैं।
- आर्थिक आत्मनिर्भरता ने “शादी ही सुरक्षा” वाली सोच को चुनौती दी है।
- वे ऐसे साथी चाहती हैं जो उनकी महत्वाकांक्षाओं का सम्मान करे और बराबरी से जिम्मेदारी निभाए।
2. बदलते सामाजिक मानदंड
- महिला का मूल्य अब उसकी वैवाहिक स्थिति से नहीं, बल्कि उसकी व्यक्तिगत उपलब्धियों से मापा जा रहा है।
- पिछली पीढ़ियों के असंतुष्ट विवाहों को देखकर नई पीढ़ी समझौता करने से बच रही है।
- आत्मनिर्णय का अधिकार और जीवन की दिशा चुनने की आज़ादी बढ़ी है।
3. संगतता और विवाह बाजार की हकीकत
- पढ़ी-लिखी, करियर-ओरिएंटेड महिलाओं के लिए उपयुक्त जीवनसाथी का दायरा संकुचित हो सकता है।
- “सेटल” करने के बजाय वे गुणवत्तापूर्ण और सम्मानजनक रिश्ते की प्रतीक्षा करती हैं।
- एकल महिलाओं की बढ़ती संख्या ने सामाजिक कलंक को कमज़ोर किया है।
निष्कर्ष:
यह बदलाव किसी विद्रोह का नारा नहीं, बल्कि महिलाओं की बढ़ती स्वतंत्रता और बदलते मूल्यों का संकेत है। वे रिश्तों में बराबरी, सम्मान और व्यक्तिगत संतुष्टि को महत्व देती हैं—और अगर यह नहीं मिलता, तो सिंगल रहना भी उन्हें स्वीकार है।