आचार्य डॉ. महेन्द्र शर्मा ‘महेश’ का तीखा सवाल — क्या सत्ता के लिए वैदिक धर्म भी दांव पर?

आचार्य डॉ. महेन्द्र शर्मा ‘महेश’

पानीपत। “दो थे यार — एक था अंधा, और दूसरे को दिखता नहीं था।” इस व्यंग्य से शुरू करते हुए आचार्य डॉ. महेन्द्र शर्मा ‘महेश’ ने कहा कि आज के भारत में वैदिक सनातन धर्म के खतरे की चर्चा दरअसल राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई का हथियार बन चुकी है।
उन्होंने सवाल उठाया — जब मुगलों और अंग्रेजों के 1235 वर्षों के शासन में भी सनातन धर्म जीवित रहा, तो आज लोकतंत्र में यह खतरे में कैसे हो सकता है? “असल में खतरे में धर्म नहीं, बल्कि राजनीतिक धर्म है,” उन्होंने कहा।

चुनावी पारदर्शिता पर गंभीर सवाल

आचार्य शर्मा ने कहा कि ईवीएम और मतदाता सूची को लेकर देश में गंभीर आरोप हैं। उन्होंने राहुल गांधी द्वारा चुनाव आयोग से प्राप्त दस्तावेजों में पाई गई विसंगतियों का हवाला देते हुए कहा—

  • एक ही कमरे में 80 मतदाता पंजीकृत।
  • किसी का पता ‘नंबर शून्य’।
  • एक मतदाता चार स्थानों पर पंजीकृत।
  • पिता/पति का नाम ‘ABCXYZ’ जैसे अंग्रेजी अक्षरों में।
  • 70 वर्षीय महिला का पहली बार वोटर बनना, वह भी दो जगह से।
  • अधेड़ उम्र के व्यक्ति के 37 बच्चे, जिनकी उम्र में मात्र छह महीने का अंतर।

उन्होंने कटाक्ष किया, “भारत की जमीन भले उतनी उपजाऊ न हो, पर बिस्तर ज़रूर ज्यादा उपजाऊ हो गया है!”

आयोग और सत्ता पर कटाक्ष

आचार्य शर्मा ने कहा कि आयोग के अपने दस्तावेजों की सच्चाई पर ही शपथपत्र मांगा जा रहा है, जबकि होना यह चाहिए था कि आयोग खुद सुप्रीम कोर्ट से जांच करवाकर अपनी वैधानिकता बचाता।
उन्होंने आरोप लगाया कि सत्ताधारी दल आयोग का वकील बनकर उसके बचाव में खड़ा है, जो लोकतांत्रिक दृष्टि से खतरनाक है।

इतिहास से सबक

उन्होंने दुर्योधन, रावण, हयग्रीव और हिरण्याक्ष का उदाहरण देते हुए कहा कि सत्ता के अहंकार ने उन्हें इतिहास में कलंकित किया। “महात्मा गांधी को 80 से अधिक देशों में स्मारक क्यों मिले? क्योंकि उन्होंने नैतिकता और विवेक से नेतृत्व किया,” शर्मा ने कहा।

जनता को संदेश

“क्या हमारा सनातन धर्म यही सिखाता है जो आज की राजनीति कर रही है? क्या हम जनता रूपी कृष्ण को भी मूर्ख समझने लगे हैं?”— यह सवाल उठाते हुए आचार्य शर्मा ने कहा कि सत्ता के लिए धर्म और नैतिकता की बलि देना देश और लोकतंत्र दोनों के लिए घातक है।

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