अमेरिका भारत के बीच बढ़ता तनाव,वैश्विक कूटनीति व भू-राजनीतिक समीकरणों में नए मोड़ की आहट देता है 

सुनिए बाबूजी! यह भारत है,अमेरिका-भारत डायरेक्ट टकराहट,अंतर्राष्ट्रीय शक्ति संतुलन की दिशा को प्रभावित कर सकने की ताकत रखता हैं

– एडवोकेट किशन सनमुख दास भावनानीं

गोंदिया महाराष्ट्र-अमेरिका और भारत के बीच बढ़ता तनाव आज वैश्विक कूटनीति और भू-राजनीतिक समीकरणों में नए मोड़ की आहट दे रहा है। यह टकराव केवल व्यापारिक या राजनयिक मतभेद तक सीमित नहीं है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय शक्ति-संतुलन को हिला सकने की क्षमता रखता है।

“सुनिए बाबूजी! यह भारत है” — ऐसा कहना है एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र का, जिनका मानना है कि यह सीधा टकराव दुनिया के शक्ति-मानचित्र पर गहरे असर छोड़ सकता है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और मौजूदा टकराव

अमेरिका की कई देशों से टकराहट और आर्थिक प्रतिबंधों का इतिहास पुराना है। आर्थिक दबाव डालने की उसकी रणनीति कई देशों को वित्तीय संकट में धकेल चुकी है। लेकिन भारत के साथ इस स्तर का तनाव शायद पहली बार देखने को मिल रहा है—50% टैरिफ और इसे और बढ़ाने की धमकी, साथ ही संभावित प्रतिबंधों की आशंका।

इन कदमों से भारत के तकनीकी, इलेक्ट्रॉनिक, इलेक्ट्रिकल और फार्मास्यूटिकल क्षेत्रों में चुनौतियाँ आ सकती हैं। लेकिन संकेत मिल रहे हैं कि भारत इस पर रणनीतिक प्रतिक्रिया देने में जुट चुका है—चाहे वह राजनयिक संवाद हो या वैकल्पिक व्यापारिक साझेदारी।

भारत की सक्रिय कूटनीतिक चालें

हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रूसी राष्ट्रपति से बातचीत हुई है, और संभावना है कि वे नवंबर-दिसंबर में भारत आएँ। इससे पहले पीएम 28-30 अगस्त 2025 को जापान, और 31 अगस्त-1 सितंबर को चीन में एससीओ शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे।

चीन की ओर से भारतीय पीएम के आने को लेकर उत्साह जताया गया है। ऐसे में यह भी संभव है कि भारत इस “टैरिफ आपदा” को अवसर में बदलने की रणनीति पर काम करे।

टैरिफ की उलटी मार?

कई विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप प्रशासन द्वारा भारत पर भारी टैरिफ लगाने की रणनीति उलटी पड़ सकती है। अगर संवाद और वार्ता के जरिए टैरिफ कम या समाप्त हो जाएँ, तो यह अमेरिका के लिए अप्रत्याशित मोड़ होगा।

भारत की तैयारी इस दिशा में साफ है—अगर रूस, चीन, भारत, ब्राज़ील और ईरान जैसे देश किसी साझा मंच पर आ गए, तो यह पश्चिमी विश्व के लिए भू-राजनीतिक भूचाल बन सकता है।

भारत-चीन समीकरण

अमेरिका के कदम ने चीन के लिए अवसर के द्वार खोल दिए हैं। यदि भारत और चीन अपने पुराने मतभेदों को पीछे छोड़कर रणनीतिक सहयोग बढ़ाते हैं, तो यह पश्चिमी देशों की राजनीतिक-आर्थिक नींव को चुनौती दे सकता है।

चीन पहले से ही अमेरिकी टैरिफ और प्रतिबंधों से जूझ रहा है और ऐसे साझेदार की तलाश में है जो उसकी अमेरिका-विरोधी रणनीति को मजबूती दे सके। भारत अगर अपने हितों की रक्षा के लिए इस दिशा में कदम बढ़ाता है, तो यह अमेरिकी रणनीति के लिए बड़ा झटका होगा।

भारत-रूस संबंध और ध्रुवीकरण

भारत और रूस के ऐतिहासिक रिश्ते रक्षा, ऊर्जा और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सहयोग पर आधारित हैं। यूक्रेन युद्ध के बाद रूस पहले ही पश्चिमी प्रतिबंधों से जूझ रहा है और उसने चीन से आर्थिक तालमेल बढ़ाया है।

अगर भारत इस त्रिकोण में सक्रिय होता है, तो भारत-चीन-रूस का ध्रुवीकरण एक वैकल्पिक वैश्विक शक्ति केंद्र के रूप में उभर सकता है—जो अमेरिकी डॉलर की वर्चस्व, ऊर्जा बाजारों और वैश्विक तकनीकी नेतृत्व को चुनौती देगा।

अमेरिका की रणनीतिक भूल

अमेरिका की मौजूदा विदेश नीति अल्पकालिक लाभों पर अधिक केंद्रित लगती है, जिसमें दीर्घकालिक भू-राजनीतिक जोखिमों का आकलन कम है। भारत पर टैरिफ और प्रतिबंध लगाने की धमकी इसका उदाहरण है।

भारत अब वैश्विक मंच पर अपनी स्वायत्त पहचान बनाए रखने की स्थिति में है और “मल्टी-अलाइनमेंट” नीति पर चल रहा है। ऐसे में, यदि अमेरिका के साथ तनाव बढ़ता है, तो भारत के पास चीन और रूस के साथ सहयोग बढ़ाने का विकल्प मौजूद है।

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि 

अमेरिका-भारत टकराव से उत्पन्न यह परिदृश्य एक नए वैश्विक शक्ति-संतुलन की ओर संकेत करता है। भारत, चीन और रूस का संभावित ध्रुवीकरण एक नए शीत युद्ध जैसी स्थिति पैदा कर सकता है, जहाँ अमेरिका को सैन्य, कूटनीतिक, आर्थिक और वित्तीय—सभी मोर्चों पर एक साथ चुनौती मिलेगी।

इसलिए, अमेरिका को अपनी नीति तय करने में बेहद सावधानी बरतनी होगी, क्योंकि आज की जुड़ी हुई वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक गलत कदम के असर की गूँज सीमाओं से बहुत दूर तक जाती है।

-संकलनकर्ता लेखक – क़र विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र

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