सुप्रीम कोर्ट का संवेदनशील हस्तक्षेप-आवारा कुत्तों से सुरक्षा व कबूतरों पर अहम् जजमेंट

सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वतःसंज्ञान लेने के 14 दिनों में निर्णय की फास्ट ट्रैक प्रवृत्ति जनहित की आपात समस्या निदान का सटीक उदाहरण सराहनीय

-एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं

गोंदिया- वैश्विक स्तरपर भारतीय न्यायपालिका की प्रतिष्ठा, पारदर्शिता और निष्पक्षता का गुणगान यूं ही नहीं किया जाता। यहां मानवीय संवेदनशीलता के साथ-साथ मूक और असहाय जीवों की सुरक्षा करने की भावना भी है। यही कारण है कि सर्वोच्च न्यायालय न केवल मानवाधिकार मामलों में, बल्कि जानवरों और पक्षियों के कल्याण एवं नियंत्रण से जुड़े मुद्दों में भी स्वतः संज्ञान लेकर ठोस कदम उठाता है।

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने दो अहम मामलों में ऐसा ही किया—पहला, आवारा कुत्तों से जनता की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए तेज़-तर्रार आदेश, और दूसरा, कबूतरों को दाना खिलाने पर प्रतिबंध के मामले में सख्त रुख। दोनों निर्णय 11 अगस्त 2025 को आए और यह इस बात का उदाहरण हैं कि उच्चतम न्यायालय जनहित के आपात मुद्दों पर कितनी संवेदनशील और तत्पर है।

आवारा कुत्तों पर स्वतः संज्ञान और कड़ा आदेश

28 जुलाई 2025 को दिल्ली के रोहिणी क्षेत्र के पूठ कलां में एक दर्दनाक घटना हुई—6 साल की बच्ची को आवारा कुत्ते ने काटा और रेबीज़ से उसकी मृत्यु हो गई। इस घटना पर आधारित टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट “City Hounded by Strays, Kids Pay Price” को आधार बनाकर सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान (Su-Moto Writ Petition No. 5/2025) लिया।

महज 14 दिनों में, 11 अगस्त 2025 को, अदालत ने इस पर ऐतिहासिक आदेश जारी किया। प्रमुख बिंदु—

  1. तत्काल कार्रवाई का आदेश – दिल्ली-एनसीआर सहित नोएडा, गुरुग्राम और गाजियाबाद के सभी निकायों को निर्देश दिया गया कि आवारा कुत्तों को तुरंत पकड़कर ‘डॉग शेल्टर’ में रखा जाए। चाहे कुत्ते नसबंद हों या नहीं, एक भी कुत्ता वापस सड़कों पर नहीं छोड़ा जाएगा
  2. शेल्टर और संरचना की व्यवस्था – 8 सप्ताह में पर्याप्त डॉग शेल्टर बनाने का निर्देश, जिनमें नसबंदी, टीकाकरण, CCTV निगरानी और पर्याप्त कर्मचारी हों।
  3. अवरोध करने वालों पर कार्रवाई – अगर कोई व्यक्ति या संगठन इस अभियान में बाधा डाले, तो उसके खिलाफ न्यायिक कार्रवाई होगी।
  4. हेल्पलाइन और टीकाकरण – एक सप्ताह के भीतर डॉग-बाइट हेल्पलाइन शुरू करने और रेबीज़ वैक्सीन की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने का आदेश।
  5. ABC नियमों पर आपत्ति – कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि एनिमल बर्थ कंट्रोल (ABC) नियम, जिसके तहत नसबंद और टीकाकृत कुत्तों को उसी स्थान पर छोड़ा जाता है, अव्यवहारिक और असमझदारी भरा है।
  6. लोकहित को सर्वोच्चता – अदालत ने एनिमल राइट्स एक्टिविस्ट्स के हस्तक्षेप को अस्वीकार कर दिया और कहा कि प्राथमिकता जनता की सुरक्षा है।

कबूतरों को दाना खिलाने पर सख्ती

उसी दिन, 11 अगस्त 2025 को, सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया जिसमें कहा गया था कि कबूतरों को दाना खिलाने से गंभीर स्वास्थ्य खतरे पैदा होते हैं। अदालत ने बृहन्मुंबई नगर निगम (BMC) को निर्देश दिया कि जो लोग इस प्रतिबंध का उल्लंघन करते हैं, उनके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज किए जाएं।

विशेष रूप से, दादर कबूतरखाना में भीड़ द्वारा जबरन गेट खोलकर दाना डालने की घटना पर पीठ ने गहरी नाराजगी जताई और कहा—

“जो लोग कोर्ट के आदेश की अवहेलना करते हैं, उन्हें गिरफ्तार किया जाए और उन पर मुकदमा चलाया जाए।”

सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को सलाह दी कि यदि उन्हें बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश में संशोधन चाहिए, तो वे हाईकोर्ट में ही जाएं, क्योंकि इस मामले में समानांतर हस्तक्षेप उचित नहीं होगा।

जनहित में फास्ट ट्रैक न्याय का उदाहरण

इन दोनों फैसलों में एक समानता है—जनहित के आपात मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट की फास्ट ट्रैक प्रवृत्ति। आवारा कुत्तों के मामले में 14 दिनों के भीतर विस्तृत आदेश और कबूतरों के मामले में सख्त टिप्पणी यह दर्शाती है कि अदालत केवल कागजी कार्रवाई तक सीमित नहीं है, बल्कि व्यावहारिक समाधान लागू करवाने के लिए गंभीर है।

अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि 

सुप्रीम कोर्ट का यह संवेदनशील हस्तक्षेप मानव और अन्य जीवों के बीच संतुलन बनाते हुए जनता की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देने का उदाहरण है। आवारा कुत्तों पर नियंत्रण और कबूतरों को दाना खिलाने पर स्वास्थ्य-आधारित प्रतिबंध, दोनों ही आदेश यह संदेश देते हैं कि “जनहित सर्वोपरि है” और कानून की अवहेलना करने वालों के लिए कोई जगह नहीं।

लेखक –कर विशेषज्ञ, स्तंभकार, साहित्यकार, अंतरराष्ट्रीय लेखक, चिंतक, कवि, संगीत माध्यमा, सीए (ATC), एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र

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