अभिमनोज

दुनिया भर में साइबर अपराध और वित्तीय धोखाधड़ी एक बड़े संकट के रूप में उभर रहे हैं। विकसित देशों से लेकर विकासशील राष्ट्रों तक, कहीं भी नागरिक इससे अछूते नहीं हैं। भारत जैसे तेजी से डिजिटल हो रहे देश में तो यह चुनौती और भी गंभीर हो जाती है। इस पृष्ठभूमि में यदि हम देखें तो स्कॉटलैंड और यूके ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है—एक बहु-एजेंसी Cyber and Fraud Taskforce की स्थापना। यह पहल इस दिशा में एक मॉडल बन सकती है, जिसे भारत में भी अपनाए जाने की सख्त ज़रूरत है।स्कॉटलैंड और यूके की बहु-एजेंसी पहल दुनिया के लिए एक प्रेरणा है। यह केवल अपराधियों को पकड़ने तक सीमित नहीं है, बल्कि जनता को सतर्क करने, संस्थागत तालमेल बनाने और आर्थिक नुकसान को कम करने का एक समग्र प्रयास है।

भारत को भी इससे सीख लेकर तुरंत कदम उठाने चाहिए। यहाँ Cyber and Fraud Taskforce जैसी पहल न केवल डिजिटल लेन-देन की सुरक्षा को मजबूत करेगी, बल्कि जनता के विश्वास को भी बनाए रखेगी।

आज जब हर व्यक्ति का बैंक खाता, मोबाइल और पहचान डिजिटल दुनिया से जुड़ चुका है, तब ऐसे टास्क फोर्स की स्थापना किसी विकल्प नहीं, बल्कि एक अनिवार्यता है।

स्कॉटलैंड की पहल और उसका विस्तार

स्कॉटलैंड के Cyber and Fraud Centre द्वारा चलाए गए सफल पायलट प्रोग्राम ने साबित किया कि यदि पुलिस, बैंकिंग क्षेत्र, साइबर सुरक्षा एजेंसियाँ और राष्ट्रीय अपराध रोधी संस्थाएँ मिलकर काम करें तो धोखाधड़ी और साइबर अपराधों से कहीं अधिक प्रभावी ढंग से निपटा जा सकता है। इसी अनुभव को ध्यान में रखते हुए अब पूरे यूके में एक बहु-एजेंसी पहल शुरू की गई है।

इसमें Police Scotland, City of London Police, Barclays, NatWest, Metro Bank, Cyber Defence Alliance और National Crime Agency जैसी प्रमुख संस्थाएँ शामिल हैं। इन सभी का उद्देश्य है—एक ऐसा साझा प्लेटफ़ॉर्म बनाना, जहाँ रियल-टाइम इंटेलिजेंस (खुफिया जानकारी) साझा हो सके, लाइव जांचों में सहयोग किया जा सके और तुरंत चेतावनियाँ जारी करके जनता तक धोखाधड़ी की नई-नई रणनीतियों की जानकारी पहुँचाई जा सके।

नियमित बैठकें और साझा कार्ययोजना

यह टास्कफोर्स केवल कागज़ी दस्तावेज़ नहीं है, बल्कि इसका ढाँचा बेहद सक्रिय और व्यवहारिक है। इसमें साप्ताहिक बैठकें होंगी, जिनमें विभिन्न संस्थाएँ अपने अनुभव, केस स्टडी और ताज़ा आँकड़े साझा करेंगी। इसका फायदा यह होगा कि किसी एक संस्था को मिली जानकारी तुरंत दूसरी संस्थाओं तक पहुँच जाएगी।

जैसे, यदि किसी बैंक को किसी नए फिशिंग स्कैम का पता चलता है तो वह सूचना तुरंत पुलिस और साइबर एजेंसियों के साथ साझा की जाएगी। इससे न केवल अपराधियों तक तेज़ी से पहुँचा जा सकेगा, बल्कि आम जनता को भी सचेत किया जा सकेगा।

धोखाधड़ी की भयावह तस्वीर

इस पहल की ज़रूरत का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इंग्लैंड और वेल्स में National Crime Agency के आँकड़ों के मुताबिक, धोखाधड़ी अब व्यक्तियों के खिलाफ होने वाले सभी अपराधों का लगभग 41% हिस्सा बन चुकी है। यानी लगभग हर दूसरा अपराध किसी न किसी रूप में वित्तीय या साइबर फ्रॉड से जुड़ा हुआ है।

वर्ष 2024–25 में कराए गए Fraud Survey for England and Wales में लगभग 4.16 मिलियन धोखाधड़ी की घटनाएँ दर्ज की गईं, जो पिछले वर्ष की तुलना में 31% अधिक थीं। यह वृद्धि दर बताती है कि अपराधियों की रणनीतियाँ कितनी तेज़ी से बदल रही हैं और क्यों एक समन्वित प्रतिक्रिया तंत्र अनिवार्य है।

आर्थिक नुकसान और बैंकिंग सेक्टर की भूमिका

UK Finance की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2024 में फ्रॉड से लगभग £1.1 अरब का नुकसान हुआ। इसमें सबसे अधिक बढ़ोतरी remote purchase scams यानी दूर से खरीद से जुड़ी धोखाधड़ी में देखी गई। इसका सीधा मतलब यह है कि ऑनलाइन शॉपिंग, ई-कॉमर्स और डिजिटल पेमेंट्स के क्षेत्र में अपराधियों ने अपनी पकड़ मजबूत कर ली है।

इस नुकसान की भरपाई केवल बैंकिंग सेक्टर के लिए संभव नहीं है। यहाँ ज़रूरत है पुलिस, साइबर सुरक्षा एजेंसियों और खुद जनता की सक्रिय भागीदारी की। यही वजह है कि इस टास्कफोर्स में बैंकों को बराबरी का हिस्सा बनाया गया है।

जनता से लाइव संपर्क और चेतावनी प्रणाली

इस पहल की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसका लक्ष्य केवल अपराधियों को पकड़ना ही नहीं है, बल्कि जनता को तुरंत सतर्क करना भी है। इसके तहत लाइव अलर्ट सिस्टम और सीधा संवाद चैनल विकसित किए जा रहे हैं।

मकसद यह है कि जैसे ही कोई नया धोखाधड़ी का तरीका सामने आए, उसी समय जनता तक संदेश पहुँच जाए। उदाहरण के लिए, यदि किसी दिन एक नकली बैंकिंग ऐप या फर्जी वेबसाइट का पता चलता है, तो तुरंत अलर्ट जारी होगा, जिसे बैंक, पुलिस और मीडिया मिलकर लोगों तक पहुँचाएँगे।

चैरिटेबल आर्म और लोगों की मदद

इस पहल से जुड़ा एक और अहम अंग है Cyber and Fraud Hub, जो एक चैरिटेबल आर्म की तरह काम कर रहा है। इसने केवल 25 महीनों में 450 से अधिक लोगों की सहायता की और लगभग ₹1.15 मिलियन (भारतीय मुद्रा में) की रकम वापस दिलाने में मदद की।

यह कार्य Police Scotland के सहयोग से किया गया, जिससे साफ होता है कि यदि कानून प्रवर्तन और सामुदायिक संगठनों में तालमेल हो तो पीड़ितों को सीधे तौर पर भी राहत पहुँचाई जा सकती है।

नेतृत्व और दृष्टिकोण

Cyber and Fraud Centre (Scotland) की CEO Jude McCorry ने इस पहल पर टिप्पणी करते हुए कहा था—
“Fraud has reached crisis levels… This taskforce ensures that collectively, we all respond quickly and consistently. By working together, we’re not just reacting to fraud, we’re actively building a stronger and smarter defence against it.”

इस बयान में दो महत्वपूर्ण बातें छिपी हैं—एक, धोखाधड़ी अब संकट के स्तर पर पहुँच चुकी है और दूसरी, इसे रोकने के लिए सामूहिक और त्वरित प्रतिक्रिया ही एकमात्र उपाय है।

भारत में ऐसे टास्कफोर्स की ज़रूरत

अब सवाल उठता है कि क्या भारत में भी ऐसा मॉडल अपनाया जा सकता है? इसका उत्तर है—हाँ, और यह आज की सबसे बड़ी ज़रूरत है।

भारत दुनिया का सबसे तेज़ी से डिजिटल हो रहा देश है। UPIडिजिटल वॉलेट्सऑनलाइन शॉपिंग और क्रिप्टोकरेंसी जैसी सुविधाओं ने यहाँ की अर्थव्यवस्था को नई ऊँचाइयाँ दी हैं। लेकिन इन सुविधाओं के साथ-साथ अपराधियों ने भी अपने तरीके बदल लिए हैं।

भारत में हर दिन लाखों लोग फिशिंग ईमेल्सफर्जी कस्टमर केयर कॉल्सऑनलाइन फ्रॉड लोन ऐप्सक्रिप्टो स्कैम्स और फर्जी निवेश योजनाओं का शिकार हो रहे हैं।

भारतीय राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट बताती है कि देश में साइबर अपराध के मामलों में पिछले पाँच वर्षों में कई गुना वृद्धि हुई है।

भारत के सामने चुनौतियां

भारत में सबसे बड़ी चुनौती है संस्थागत समन्वय की कमी। पुलिस, बैंकों, RBI, CERT-In और विभिन्न साइबर सेल अपने-अपने स्तर पर काम करते हैं, लेकिन इनके बीच रियल-टाइम इंटेलिजेंस साझा करने का कोई एकीकृत प्लेटफ़ॉर्म नहीं है।

इसके अलावा, भारत की विशाल जनसंख्या और भाषाई विविधता के कारण चेतावनी संदेश जनता तक तुरंत और प्रभावी ढंग से पहुँचाना आसान नहीं है।

क्या किया जा सकता है?

यदि भारत स्कॉटलैंड के मॉडल को अपनाए तो निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं—

  1. राष्ट्रीय स्तर पर Cyber and Fraud Taskforce की स्थापना, जिसमें RBI, SEBI, प्रमुख बैंक, पुलिस, साइबर एजेंसियाँ और टेक कंपनियाँ शामिल हों।
  2. रियल-टाइम इंटेलिजेंस प्लेटफ़ॉर्म, ताकि धोखाधड़ी की कोई भी नई जानकारी तुरंत सभी संस्थाओं तक पहुँचे।
  3. लाइव अलर्ट सिस्टम, जो SMS, सोशल मीडिया और डिजिटल पेमेंट ऐप्स के माध्यम से जनता को तत्काल चेतावनी दे।
  4. पीड़ित सहायता केंद्र, जहाँ धोखाधड़ी का शिकार हुए लोग तुरंत शिकायत दर्ज कर सकें और अपनी राशि वापस पाने की प्रक्रिया शुरू कर सकें।
  5. जन-जागरूकता अभियान, जिसमें क्षेत्रीय भाषाओं में सरल संदेशों के माध्यम से लोगों को सचेत किया जाए।

भारत के लिए अवसर

भारत के पास एक बड़ा फायदा है—यहाँ पहले से ही डिजिटल इंडिया मिशनUPI नेटवर्क और आधार आधारित पहचान प्रणाली जैसी संरचनाएँ मौजूद हैं। यदि इन्हें एकीकृत करके इस्तेमाल किया जाए तो फ्रॉड से निपटना कहीं अधिक आसान हो सकता है।

इसके अलावा, भारत में युवाओं की बड़ी आबादी है जो तकनीकी रूप से जागरूक है। यदि इन्हें साइबर वालंटियर्स के रूप में जोड़ा जाए तो धोखाधड़ी की रोकथाम में जनता की सीधी भागीदारी भी संभव हो सकती है।

भारत में हाल ही में सामने आए बड़े साइबर फ्रॉड केस स्टडीज़

1. Jamtara मॉड्यूल – ‘Phishing Capital of India’
झारखंड के जामताड़ा जिले से जुड़े साइबर अपराधियों का यह गिरोह लंबे समय से देशभर में ऑनलाइन बैंकिंग और KYC धोखाधड़ी को अंजाम देता रहा है। हाल ही में दिल्ली, मुंबई और हैदराबाद में हुई गिरफ्तारी ने दिखाया कि अब भी यह नेटवर्क सक्रिय है। ये लोग बैंक ग्राहक बनकर कॉल करते हैं, KYC अपडेट या ATM ब्लॉक होने का बहाना बनाते हैं और OTP या कार्ड डिटेल्स लेकर लाखों रुपये निकाल लेते हैं।

2. यूपी का ‘Crypto Investment Scam’ (2024)
उत्तर प्रदेश साइबर सेल ने 2024 में एक बड़े क्रिप्टो निवेश धोखाधड़ी का खुलासा किया। आरोपी विदेशी प्लेटफ़ॉर्म्स की नकली ऐप और वेबसाइट बनाकर निवेशकों को दोगुना-तीनगुना रिटर्न का लालच देते थे। जांच में सामने आया कि हजारों लोग इसमें फँसे और करीब ₹300 करोड़ का घोटाला हुआ।

3. महाराष्ट्र का ‘Remote Access App Fraud’ (2023)
मुंबई और पुणे में कई लोगों ने शिकायत दर्ज कराई कि ‘AnyDesk’ और ‘QuickSupport’ जैसे ऐप डाउनलोड कराने के बाद उनके मोबाइल फोन पर पूरा नियंत्रण ठगों ने हासिल कर लिया। आरोपी खुद को बैंक प्रतिनिधि या बीमा एजेंट बताकर लिंक भेजते और जैसे ही पीड़ित ऐप इंस्टॉल करता, उसके बैंकिंग ऐप्स से पैसा सीधे निकाल लिया जाता।

4. दिल्ली का ‘Job Scam via LinkedIn’ (2024)
दिल्ली पुलिस की साइबर यूनिट ने एक ऐसे नेटवर्क का पर्दाफाश किया, जो युवाओं को LinkedIn और अन्य जॉब पोर्टल्स के जरिए हाई-पेइंग वर्क-फ्रॉम-होम नौकरियों का झांसा दे रहा था। उनसे पहले ‘रजिस्ट्रेशन फीस’ और ‘ट्रेनिंग फीस’ के नाम पर पैसे लिए जाते, फिर पीड़ितों को ब्लॉक कर दिया जाता। अकेले दिल्ली-एनसीआर में लगभग 500 लोग इस फ्रॉड का शिकार बने।

5. बेंगलुरु का ‘Deepfake Loan Scam’ (2025 की शुरुआत)
इस साल की शुरुआत में बेंगलुरु पुलिस ने एक अनोखे साइबर फ्रॉड का खुलासा किया, जिसमें अपराधियों ने डीपफेक तकनीक का इस्तेमाल कर पीड़ित के परिचितों की नकली वीडियो और ऑडियो बनाकर उन्हें ब्लैकमेल किया। साथ ही, कुछ मामलों में ऐप-बेस्ड लोन देने वाली शैडो कंपनियों ने ग्राहकों की जानकारी का दुरुपयोग कर उन्हें धमकाकर पैसे वसूले।

इन केस स्टडीज़ से यह साफ़ होता है कि भारत में साइबर फ्रॉड अब केवल फोन कॉल या साधारण फिशिंग ईमेल तक सीमित नहीं रहा, बल्कि क्रिप्टो, डीपफेक, रिमोट एक्सेस ऐप्स और सोशल मीडिया नेटवर्किंग के जरिये नए-नए रूपों में सामने आ रहा है।

लेखक : अभिमनोज  / वरिष्ठ पत्रकार  एवं साइबर विधि के अध्येता

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