अभिमनोज

डिजिटल युग की तेज़ रफ्तार ज़िंदगी में सोशल मीडिया हर किसी का साथी बन चुका है। लोग सुबह की शुरुआत से लेकर रात तक फेसबुक, इंस्टाग्राम, टेलीग्राम, स्नैपचैट और न जाने कितने प्लेटफ़ॉर्म पर सक्रिय रहते हैं। यहां दोस्ती होती है, व्यापारिक नेटवर्क बनते हैं और मनोरंजन का नया संसार खुलता है। लेकिन इसी सोशल मीडिया पर अब साइबर अपराधियों ने जाल फैलाकर भोले-भाले लोगों की मेहनत की कमाई पर डाका डालना शुरू कर दिया है।सबसे आम फ़ॉरम फँसाने वाली ट्रिक में “ब्यूटी ट्रैप” प्रमुख है: सुंदर महिलाओं की फर्जी प्रोफाइल बना कर पुरुषों को दोस्ती में फंसाना, फिर धीरे-धीरे उच्च भावनात्मक जुड़ाव पैदा करने के बाद झांसे में फोन कर वसूलना। अक्सर ठग खुद को विदेशी नागरिक बताते हैं और गिफ्ट भेजने का फैसला लेकर आते हैं। गिफ्ट कस्टम में फँसे होने का बहाना बना कर फिर टैक्स या शुल्क की मांग की जाती है—और उस स्थिति में जितना पैसा मिलता है, साफ कर लिया जाता है।
एंड्राइड और इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफॉर्म्स पर “सस्ती बिक्री”, “वर्क फ्रॉम होम”, “घर बैठे पैसे कमाएं”, “जॉब ऑफर” जैसे मुहावरों के साथ ठगे जाने वाले भी बढ़ रहे हैं। ये पोस्ट फर्जी लिंक देते हैं—जैसे जॉब अप्लाटॉर्म्स या बैंक जैसी दिखने वाली साइट—जब कोई क्लिक करता है, ठग आसानी से बैंक डिटेल, UPI-PIN, OTP आदि हासिल कर लेते हैं और कुछ ही पल में खाते से पैसे गायब हो जाते हैं।एक सबसे खतरनाक तरीका है ‘सेक्सटर्शन’: साइबर ठग वीडियो कॉल कर अश्लील सामग्री निकालते हैं, फिर वायरल करने की धमकी देकर भारी फिरौती वसूलते हैं। उस डर के कारण, ज्यादातर पीड़ित पुलिस से शिकायत करने से भी डरते हैं।हाल ही में लखनऊ में हेल्थकेयर में काम करने वाली एक महिला को विदेश में डॉक्टर होने का झांसा देकर ऑनलाइन दोस्ती की गई थी। फिर गिफ्ट के नाम पर ₹2.10 लाख ठग लिए गए—कस्टम शुल्क की बहाना बनाकर। अब पुलिस साइबर क्राइम सेल में इस मामले की जांच कर रही है। यह घटना इस बात का स्पष्ट उदाहरण है कि कैसे भावनात्मक जुड़ाव, फर्जी प्रोफाइल और स्मार्ट भाषा का उपयोग कर ठग जीवनभर की मेहनत की कमाई उड़ा देते हैं।
फर्जी प्रोफाइल और लुभावने ऑफर
ठगों की सबसे बड़ी रणनीति है— फर्जी प्रोफाइल। खासतौर से सुंदर महिलाओं के नकली अकाउंट बनाकर वे पुरुषों को फंसाते हैं। दोस्ती का प्रस्ताव भेजा जाता है, फिर बातचीत शुरू होती है, और धीरे-धीरे भावनाओं का जाल बुनकर आर्थिक ठगी तक पहुंचा दिया जाता है। वहीं, महिलाओं को भी झूठी तारीफों और आकर्षक ऑफरों से फंसाने की घटनाएं बढ़ी हैं।यही नहीं, बड़े ब्रांड का नाम लेकर ठग सस्ते दामों पर सामान बेचने का झांसा देते हैं। लोग लालच में आते हैं, ऑनलाइन पैसे भेजते हैं और फिर ठग गायब हो जाते हैं।कई मामलों में ठग खुद को विदेशी बताकर गिफ्ट भेजने का नाटक करते हैं। फिर कहते हैं कि गिफ्ट कस्टम विभाग में फंसा है और उसे छुड़ाने के लिए टैक्स देना होगा। लोग लालच और भरोसे में रकम भेज देते हैं। हाल ही में लखनऊ में हेल्थ सेक्टर में काम करने वाली एक महिला को ऐसे ही 2.10 लाख रुपये का चूना लगाया गया।
लिंक और ऑफ़र से बैंक अकाउंट तक पहुंच
‘वर्क फ्रॉम होम’, ‘घर बैठे पैसे कमाइए’, ‘लोन मंजूर’, ‘ऑनलाइन जॉब ऑफर’ जैसी लुभावनी पोस्टों में लिंक डाला जाता है। जैसे ही लोग क्लिक करते हैं, ठग उनके बैंक अकाउंट, यूपीआई पिन और ओटीपी तक पहुंच जाते हैं।
वीडियो कॉल और ब्लैकमेलिंग
एक और खतरनाक तरीका है वीडियो कॉल पर फंसाकर ब्लैकमेल करना। पहले दोस्ती, फिर निजी बातें और अंत में वीडियो कॉल। इस दौरान स्क्रीन रिकॉर्ड करके अश्लील वीडियो तैयार कर लिया जाता है। बाद में उसी वीडियो को वायरल करने की धमकी देकर मोटी रकम वसूली जाती है। शर्मिंदगी और बदनामी के डर से लोग चुप रह जाते हैं और शिकायत भी नहीं करते।
हनी ट्रैप का साइबर संस्करण
साइबर ठगी की दुनिया में अब एक नया हथियार जुड़ चुका है— हनी ट्रैप। पहले हनी ट्रैप की कहानियाँ जासूसी और राजनीतिक मामलों में सुनी जाती थीं, लेकिन अब यह आम लोगों को फंसाने का साधन बन गया है।
- ठग सुंदर महिलाओं की तस्वीरें या वीडियो डालकर नकली अकाउंट बनाते हैं।
- पुरुषों को आकर्षित कर उनसे अंतरंग चैट या कॉल कराई जाती है।
- फिर उन चैट्स या वीडियो को वायरल करने की धमकी दी जाती है।
- कई बार पुरुषों से न सिर्फ पैसे वसूले जाते हैं बल्कि उनकी निजी जानकारी का भी दुरुपयोग होता है।
हाल ही में NCRB के आंकड़ों में भी यह सामने आया है कि 2024-25 में ब्लैकमेलिंग और हनी ट्रैप से जुड़े साइबर अपराधों में 22% की बढ़ोतरी हुई है। इसमें ज्यादातर शिकार 25 से 45 वर्ष की उम्र के पुरुष बने।
आँकड़े और तथ्य
- NCRB की 2024 रिपोर्ट के अनुसार, भारत में साइबर अपराध के कुल मामलों में 30% मामले ऑनलाइन फ्रॉड और सोशल मीडिया ठगी से जुड़े हुए हैं।
- इनमें से लगभग 18% मामले नकली प्रोफाइल और हनी ट्रैप से संबंधित हैं।
- 2025 के शुरुआती छह महीनों में ही 40,000 से ज्यादा शिकायतें साइबर ठगी की दर्ज की जा चुकी हैं, जिनमें सोशल मीडिया ठगी का अनुपात सबसे अधिक है।
इस तरह की घटनाएँ अकेले भारत में ही नहीं, बल्कि ग्लोबली तेजी से बढ़ रही हैं। अर्थव्यवस्था और अलर्टनेस दोनों के मामले में भारत लगातर पीछे है। Romance scams से व्यवसायिक रूप से भी भारी नुकसान हो रहा है: वैश्विक स्तर पर 2024 में रोमांस स्कैम पीड़ितों ने कुल $1.3 बिलियन से अधिक की राशि गंवाई—जो 2021 में $547 मिलियन थी, यानी मात्र 3 वर्षों में लगभग दोगुनी बढ़ोतरी हुई। भारत जैसे डिजिटल रूप से उभरते देश के लिए यह चेतावनी किसी आइना से कम नहीं है।
डेटिंग ऐप्स और सोशल मीडिया रिजल्टेट प्लेटफ़ॉर्म्स में जुड़ने वाली अधिकांश ठगी 40% की दर से सोशल मीडिया से ही शुरू होती हैं; सिर्फ 19% मामलों में यह किसी वेबसाइट या अन्य ऐप से शुरू होती है। यानी प्रारंभिक संपर्क प्राथमिक रूप से फेसबुक, इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफॉर्म्स द्वारा होता है। फिर लॉजिक क्लीयर करते हुए ठग, अपने शिकार को WhatsApp या Telegram पर ले आते हैं और वहाँ से ठगी शुरू करते हैं।
सरकार और पुलिस बल भी सक्रिय हो गए हैं—उदाहरण के लिए, मुंबई का साइबर हेल्पलाइन 1930 अब रोजाना 2,500 से 2,700 कॉल्स संभालता है, जिसमें लगभग 200 कॉल्स वास्तविक साइबर अपराध से संबंधित होती हैं। वर्ष 2025 की शुरुआत से अब तक इस हेल्पलाइन पर शर्मनाक ₹600 करोड़ का साइबर फ्रॉड रिकॉर्ड किया गया है, लेकिन सक्रिय रिपोर्टिंग और ‘गोल्डन अवर’ फ्रॉड सौदों की रोकथाम से ₹109 करोड़ से अधिक बचाए गए हैं। यह दिखाता है कि प्रोएक्टिविटी और जागरूकता से बड़ा प्रभाव पड़ता है।
समाजशास्त्र और साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि हमें अब केवल डेटा और तकनीकी उपायों पर निर्भर नहीं रहना चाहिए—जिन व्यक्तियों को Romance Scams रोग की भांति प्रभावित किए जा रहा है, उनमें संवेदनशीलता, अकेलापन और आर्थिक स्थिति ऐसे कारक हैं जो उन्हें अनुमान से अधिक गलत फैसलों की ओर ले जाते हैं। शिक्षा और संपर्क, ये अब दो जरूरी हथियार हैं।
Google ने 2023 में DigiKavach नाम से एक ऑनलाइन फ्रॉड पहचान कार्यक्रम लॉन्च किया है जो भारतीय उपयोगकर्ताओं को फिनटेक और प्रिडेटरी लोन-ऐप्स जैसे खतरे से बचाने का प्राथमिक लक्ष्य रखता है। यह कार्यक्रम Indian Cyber Crime Coordination Centre (I4C) और Ministry of Home Affairs के सहयोग से चल रहा है। आने वाले वर्ष 2025 में इस सिस्टम को और तकनीकी रूप से मजबूत करने की योजना है।
इसके अलावा, ShieldUp नाम का एक गेम आधारित साइबर जागरूकता प्रोग्राम है, जिसमें यूज़र्स को छोटे-छोटे नकली ठगी पर आधारित खेल के जरिए तैयार किया जाता है—ताकि वे वास्तविक ठगी की तकनीकों को पहचान सकें। 3,000 प्रतिभागियों पर किए गए अध्ययन में यह पाया गया कि इस गेम ने ठगी पहचानने की क्षमता में टिकाऊ सुधार किया। इसका इस्तेमाल भविष्य में जनता को शिक्षित करने का प्रभावी मॉडल बन सकता है।
फिर भी सबसे खतरनाक योजनाओं में से एक है ‘Pig Butchering Scam’—जहाँ अपराधी लंबे समय तक भावनात्मक भरोसा बनाकर पीड़ित को निवेश के लालच में फँसाते हैं और फिर बड़े धनराशि तक की ठगी कर लेते हैं। 2024 में ऐसे मामलों का अध्ययन किया गया था जिसमें ठगी की कुल राशि $521 मिलियन से अधिक थी। यह मासूमियत और डिजिटल अज्ञानता को बड़े पैमाने पर भुनाने वाला धोखा है।
फिर भी, केवल ठगी की घटनाओं का विवरण नहीं, बल्कि समाज और व्यक्तिगत जीवन पर इनके भावनात्मक असर को भी समझना जरूरी है। कई पीड़ित मानो सिर्फ अपना वित्तीय नुकसान नहीं सह पाते, बल्कि भावनात्मक टूट-फूट उनकी मानसिकता पर भारी पड़ती है। कई संजीदा केस-पढ़े गए जहां पीड़ितों को कम उम्र में बड़ी मानसिक दुर्घटना का सामना करना पड़ा—कुछ ने आत्महत्या की भी कोशिश की। यह एक साइबर फैटिग है, जिसे नए ढंग से समझने की जरूरत है।
विशेषज्ञों की राय
साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि यह अपराध केवल तकनीकी नहीं, बल्कि मनोवैज्ञानिक भी है। लालच, अकेलापन और आकर्षण— ये तीन कमजोरियां ठगों का हथियार हैं। जब तक लोग सावधान नहीं होंगे, कानून भी पूरी तरह मदद नहीं कर पाएगा।
पुलिस और सिस्टम की चुनौती
पुलिस और साइबर क्राइम सेल इन मामलों पर नजर रख रही है, लेकिन चुनौती यह है कि ठग अक्सर विदेशी सर्वर और वर्चुअल नंबरों का इस्तेमाल करते हैं। ऐसे में उन्हें ट्रैक करना मुश्किल हो जाता है।
- किसी भी अनजान लिंक पर क्लिक न करें।
- सोशल मीडिया पर अनजान फ्रेंड रिक्वेस्ट स्वीकार न करें।
- वीडियो कॉल पर निजी गतिविधियां न करें।
- किसी भी ऑनलाइन ऑफर को तुरंत पैसे देकर न खरीदें।
- ठगी का शिकार होने पर तुरंत राष्ट्रीय साइबर अपराध पोर्टल (cybercrime.gov.in) पर शिकायत दर्ज करें।
आज सोशल मीडिया जितना अवसरों का संसार है, उतना ही ठगी का बाज़ार भी बन चुका है। सुंदर महिलाओं की फर्जी प्रोफाइल, लुभावने ऑफर और हनी ट्रैप— ये सब मिलकर ऐसे जाल हैं, जिनसे बचना तभी संभव है जब हम सतर्क रहें और डिजिटल समझदारी अपनाएँ।
लेखक : अभिमनोज/ वरिष्ठ पत्रकार एवं साइबर विधि के अध्येता