अभिमनोज

सूदखोरी सिर्फ एक आर्थिक अपराध नहीं, बल्कि सामाजिक-मानसिक उत्पीड़न का व्यवस्थित तंत्र है। गरीब और मजबूर तबके का शिकार बनाकर अत्यधिक ब्याज वसूला जाता है, धमकियां दी जाती हैं, अपमान कराया जाता है और कई बार पीड़ित आत्महत्या तक मजबूर हो जाते हैं। यही वजह है कि पुलिस कार्रवाई के साथ-साथ न्यायिक निगरानी, राज्यस्तरीय कड़े कानून और राष्ट्रीय स्तर पर डिजिटल लेंडिंग पर सख्त नियमन—सभी एक साथ काम करें, तभी वास्तविक राहत मिलती है।सूदखोरी का इकोसिस्टम तभी टूटेगा जब पुलिस की त्वरित कार्रवाई, अदालत की सतर्क निगरानी, राज्य-केंद्र के समन्वित क़ानून, और RBI-आधारित डिजिटल नियमन एक साथ काम करेंगे। रायपुर प्रकरण जैसे मामलों में कड़ी लेकिन निष्पक्ष जांच, संपत्ति जब्ती और त्वरित ट्रायल के संदेश से ही स्थानीय नेटवर्क हतोत्साहित होंगे। दूसरी ओर पीड़ितों के लिए कानूनी-मानसिक सहायता और औपचारिक ऋण तक आसान पहुँच सुनिश्चित करना उतना ही आवश्यक है—वरना चक्रव्यूह बदलकर फिर लौट आता है।
रायपुर का ताज़ा घटनाक्रम और बड़े सवाल
छत्तीसगढ़ में चर्चित तोमर बंधुओं पर छापों में नकदी, गहने, कथित अवैध हथियार और ऋण से जुड़े दस्तावेज़ मिलने की खबरों के बाद मामला संगठित अपराध की दिशा में बढ़ा। दोनों इतिहास-शीटर भाई फरार बताए गए और पुलिस ने इनाम घोषित किया। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार जब्तगी और तलाशी के दावे सामने आए जबकि हाईकोर्ट के पेज पर भी तोमर बंधुओं को अदालत में हाज़िर होने के निर्देश का उल्लेख दर्ज है, जो न्यायिक सतर्कता की ओर संकेत करता है। मीडिया रिपोर्ट्स हैं कि छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने बहुचर्चित सूदखोर तोमर बंधुओं की याचिका पर मंगलवार को सुनवाई की, इस दौरान अदालत ने सात एफआईआर दर्ज करने पर दो सप्ताह में जवाब मांगा है.इस मामले में हाईकोर्ट ने दर्ज सात एफआईआर पर सवाल उठाते हुए रायपुर एसपी से पूछा है कि- किस आधार पर एक साथ इस तरह का केस दर्ज किया गया है, अदालत ने उनसे व्यक्तिगत शपथ-पत्र के साथ दो सप्ताह में जवाब मांगा है.
उल्लेखनीय है कि रायपुर के तेलीबांधा और पुरानीबस्ती थाने में सूदखोर वीरेंद्र तोमर और उसके भाई रोहित तोमर पर एक्साटर्शन और सूदखोरी का केस दर्ज किया गया, पुलिस ने उनके घर में दबिश दी, जहां चेक और जमीनों के दस्तावेज मिले, इस कार्रवाई में यह मामला सामने आया कि- यह आर्गेनाइज्ड क्राइम से जुड़ा हुआ प्रकरण है.
इस मामले में पुलिस ने तोमर बंधुओं के खिलाफ अलग-अलग सात एफआईआर दर्ज कर सख्ती से कार्रवाई शुरू कर दी, तो वीरेंद्र तोमर और रोहित तोमर गिरफ्तारी के डर से फरार हो गए.
पुलिस के हवाले से खबरें हैं कि रोहित ने अपनी पत्नी के नाम से ऑफिस खोला था, जहां से सूदखोरी का धंधा ऑपरेट होता था, इस मामले में दोनों हिस्ट्रीशीटर भाइयों की जानकारी देने पर रायपुर पुलिस ने इनाम भी घोषित किया है.
उधर, पुलिस गिरफ्तारी से बचने के लिए तोमर बंधुओं ने अपने एडवोकेट के जरिए हाईकोर्ट में अग्रिम जमानत की अर्जी पेश की, जिसकी सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के एडवोकेट ने पुलिस पर दुर्भावनापूर्वक कार्रवाई करने का आरोप लगाया और कहा कि- उन्हें सूदखोरी और आर्गेनाइज्ड क्राइम जैसे केस में फंसाया गया है!
डेटा जो तस्वीर साफ करता है
भारतीय बैंकिंग तंत्र में दर्ज धोखाधड़ी के मामलों का मौद्रिक मूल्य FY25 में तीन गुना बढ़कर ₹36,014 करोड़ पहुँचा, भले ही मामलों की संख्या घटी हो। विश्लेषण बताता है कि इसमें सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद कुछ पुराने प्रकरणों की पुनर्वर्गीकरण का असर भी शामिल है, फिर भी loan-linked और डिजिटल धोखाधड़ी बढ़ती प्रवृत्ति दिखा रही हैं। यह प्रवृत्ति अनौपचारिक उधारी और सूदखोरी के जाल के लिए उर्वर जमीन बनाती है क्योंकि औपचारिक चैनलों में भरोसा कमज़ोर पड़ता है।
राज्य कानून और हालिया सख्ती
कई राज्यों ने सूदखोरी पर लगाम कसने को अलग-अलग रास्ते अपनाए हैं। गुजरात में पुलिस ने विशेष अभियान के तहत सूदखोरों की संपत्तियां जब्त कीं—चार मकान, दो प्लॉट और एक SUV—जिन पर मनी-लेंडर्स एक्ट और संगठित अपराध कानून के तहत कार्रवाई हुई। यह दृष्टांत बताता है कि लाइसेंस, ब्याज-दर और वसूली तरीकों पर उल्लंघन होने पर संपत्ति जब्ती जैसे कड़े कदम भी संभव हैं।
कर्नाटक ने 2004 के अत्यधिक ब्याज निषेध कानून में 2025 में संशोधन आगे बढ़ाया, जिससे अत्यधिक ब्याज वसूली पर दंडात्मक प्रावधान और प्रवर्तन सुदृढ़ हों। महाराष्ट्र में 2014 का मनी-लेंडिंग रेग्युलेशन एक्ट प्रभावी ढंग से लागू करने की दिशा में हाल में नियमों के माध्यम से निजी साहूकारों के लिए दरें सार्वजनिक करने और लाइसेंस प्रदर्शित करने जैसी पारदर्शिता बाध्यताएँ बढ़ाई गईं। ये कदम पीड़ितों को कानूनी सहारा और साक्ष्य जुटाने में मदद करते हैं।
डिजिटल लेंडिंग और ऐप आधारित सूदखोरी का नया मोर्चा
RBI ने 2 सितंबर 2022 के दिशा-निर्देशों से डिजिटल लेंडिंग ऐप्स पर ग्राहक-सुरक्षा, डेटा-गोपनीयता, शुल्क-पारदर्शिता और शिकायत निवारण को बाध्यकारी बनाया। 2025 में इस ढांचे पर अनुपालन और CIMS जैसी निगरानी पहलों पर जोर बढ़ा, ताकि अधिकृत-बनाम-अनधिकृत ऐप्स की पहचान स्पष्ट हो और डिफॉल्ट-लॉस गारंटी जैसे प्रबंध नियंत्रित रहें। यह सूदखोरी के डिजिटल रूपों पर नकेल कसने की केंद्रीय कड़ी है। it
राष्ट्रीय विधायी पहल की दिशा
वित्त मंत्रालय की ओर से जारी ड्राफ्ट BULA यानी Banning of Unregulated Lending Activities बिल—अनधिकृत उधारी पर प्रतिबंध, दंड और प्रवर्तन प्राधिकरण के प्रावधान—पर सार्वजनिक विमर्श चल रहा है। कुछ विशेषज्ञ इसे उपभोक्ता-सुरक्षा के लिए ज़रूरी मानते हैं, तो कुछ इसे राज्यों के अधिकार-क्षेत्र में हस्तक्षेप बताकर सुधारों की मांग करते हैं। इसका सार यह है कि अनियमित उधारी पर एक समेकित, स्पष्ट और सुसंगत राष्ट्रीय कानून की ज़रूरत व्यापक सहमति पा रही है।
हाईकोर्ट द्वारा बहु-FIR की वैधानिकता, एकत्र साक्ष्यों की विश्वसनीयता और संगठित अपराध के तत्वों पर राज्य पुलिस से शपथ पत्र सहित जवाब माँगना—यह सब न्यायिक समीक्षा की स्वस्थ परंपरा को दिखाता है। ऐसी निगरानी यह सुनिश्चित करती है कि कठोर दंड तभी लागू हों जब जांच निष्पक्ष, अनुपातिक और साक्ष्य-आधारित हो। रायपुर प्रकरण में भी अदालत की पूछताछ यही संदेश देती है कि सख्ती और प्रक्रिया-न्याय दोनों साथ-साथ चलें।
सामाजिक प्रभाव और पैटर्न
व्यापारियों और किसानों की आत्महत्याओं में बढ़ते कर्ज़, अत्यधिक ब्याज और वसूली-धमकियों की भूमिका बार-बार उभर रही है—गुजरात, लखनऊ और ओडिशा जैसे हालिया मामलों ने स्थानीय प्रशासन को सतर्क किया है। ये घटनाएँ केवल निजी त्रासदी नहीं, बल्कि सार्वजनिक नीति की विफलताओं का दर्पण हैं—वित्तीय साक्षरता की कमी, औपचारिक ऋण की सीमित पहुँच और कमजोर प्रवर्तन इसका त्रिकोण है।
जांच कैसे हो ताकि पीड़ित को वास्तविक न्याय मिले
- प्रथम चरण में लेन-देनों का फॉरेंसिक नक्शा तैयार हो—चेक, प्रॉमिसरी नोट, बैंक स्टेटमेंट, व्हाट्सएप-कॉल लॉग, GPS-ट्रिगरिंग और सीसीटीवी—ताकि उधारी का पैटर्न, ब्याज-दर और धमकी-वसूली के सबूत बनें।
- उधारी चक्र के ‘कलेक्टर’ और ‘फाइनेंसर’ की भूमिका अलग-अलग पहचान कर IPC, राज्य Money-lenders Act और संगठित अपराध कानूनों का समवर्ती प्रयोग किया जाए। गुजरात की जब्ती कार्यवाही जैसी मिसालें केस-बिल्डिंग की ठोस रणनीति देती हैं। पीड़ित-केंद्रित FIR ड्राफ्टिंग—ब्याज-दर, वसूली तारीख़ें, धमकी के प्रकार, साक्ष्य-सूची—को स्टैंडर्ड टेम्पलेट बनाया जाए, ताकि अदालत में केस टिके।
- जिला स्तर पर Fast-track अदालतें—ऐसे मामलों में 90–120 दिन की तय समयसीमा—ताकि लंबे मुकदमों के कारण समझौते और दबाव न बढ़ें।
नीतिगत सिफारिशें जो तुरंत लागू की जा सकती हैं
- लाइसेंस और डिस्क्लोज़र व्यवस्था का सार्वजनिकीकरण
सभी लाइसेंसी साहूकारों के लाइसेंस नंबर, अधिकतम ब्याज दर, प्रोसेसिंग फीस और शिकायत निवारण अधिकारी का नाम-नंबर थाने, तहसील और ग्राम पंचायत भवन में प्रदर्शित करने की बाध्यता। महाराष्ट्र ने दरें प्रदर्शित करना और लाइसेंस दिखाना अनिवार्य किया—इसे राष्ट्रीय मानक बनाया जा सकता है। ब्याज सीमा और दंड की एकरूपता - कर्नाटक जैसे राज्यों के कानूनों में संशोधन के बाद दर-सीमा और दंड स्पष्ट हुए हैं। केंद्र एक मॉडल एक्ट जारी कर राज्यों को समान मानक अपनाने को प्रेरित करे।
- डिजिटल लेंडिंग की ‘व्हाइट-लिस्ट’ और ‘रेड-लिस्ट’
RBI दिशा-निर्देशों के आलोक में अधिकृत ऐप्स की सार्वजनिक सूची अपडेट हो और अनधिकृत ऐप्स पर प्लेटफ़ॉर्म-स्तर पर तत्काल ब्लॉक, साथ ही कॉल-सेंटर आधारित उत्पीड़न पर पुलिस की संयुक्त टास्क-फोर्स। BULA को सहयोगी-संघीय ढाँचे में लाना - मसौदा बिल में राज्यों की लाइसेंसिंग शक्तियों और प्रवर्तन एजेंसियों के समन्वय का ठोस डिज़ाइन शामिल हो ताकि अधिकार-क्षेत्र टकराव न हो और ज़मीनी प्रवर्तन तेज़ हो।
- पीड़ित सहायता और पुनर्वास
जिला-कानूनी सेवा प्राधिकरण के साथ मिलकर Debt Distress Helpline, नि:शुल्क वकालतनामा, और ‘ऋण-समझौता क्लिनिक’ जो वैध और अवैध उधारी की पहचान कराने में मदद करें।
व्यक्तिगत और सामुदायिक स्तर पर क्या करें
- किसी भी उधारी दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर से पहले फोटोकॉपी रखें, दर और शुल्क लिखित में मांगें, और भुगतान डिजिटल माध्यम से करें ताकि ट्रेल बने रहे।
- धमकी, मारपीट, सोशल मीडиа पर अपमान—इनमें से किसी का भी स्क्रीनशॉट/रिकॉर्डिंग सुरक्षित रखें; यह IPC और आईटी एक्ट के तहत साक्ष्य बनता है।
- थाने में शिकायत के साथ जिला रजिस्ट्रार ऑफ मनी-लेंडर्स या कलेक्टर कार्यालय में भी शिकायत दर्ज कराएँ, ताकि प्रशासनिक और आपराधिक दोनों चैनल सक्रिय हों।
- यदि उधारी ऐप से है तो RBI की गाइडलाइन के अनुरूप कंपनी का नाम, NBFC पार्टनर और शिकायत अधिकारी पहचानें; ‘अनधिकृत’ दिखने पर साइबर हेल्पलाइन 1930 या राष्ट्रीय साइबर पोर्टल पर रिपोर्ट करें।
लेखक : अभिमनोज/ वरिष्ठ पत्रकार एवं साइबर विधि के अध्येता