Category: विचार

रिश्तों की हत्या का आधुनिक ट्रेंड : नौकरी लगते ही पतियों को छोड़ रही हैं आधुनिक औरतें ……..

“रोज़गार मिला, रिश्ते छूटे,जिसने पढ़ाया, वही पराया हो गया” विवाह अब त्याग और समर्पण की बजाय स्वार्थ और स्वतंत्रता की शरण में चला गया है। अनेक मामले सामने आ रहे…

जब बच्चों की शिक्षा पर भारी पड़ता है पाखंड

भारत में बच्चों की शिक्षा को लेकर सबसे बड़ा संकट केवल गरीबी या संसाधनों की कमी नहीं, बल्कि धार्मिक पाखंड है। कुछ स्वयंभू बाबाओं द्वारा शिक्षा को अपवित्र, स्त्रियों के…

“स्क्रीन का शिकंजा: ऑस्ट्रेलिया से सबक लेता भारत?”

ऑस्ट्रेलिया ने 16 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए यूट्यूब समेत सभी सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर प्रतिबंध लगाने का साहसिक फैसला लिया है। यह कदम बच्चों को ऑनलाइन…

आख़िर ये कैसे जानेंगे दर्द ……… सरकारी स्कूलों में क्यों नहीं पढ़ते राजनेताओं के बच्चे

जब तक विधायक, मंत्री और अफसरों के बच्चे निजी स्कूलों में पढ़ते रहेंगे, तब तक सरकारी स्कूलों की हालत नहीं सुधरेगी। अनुभव से नीति बनती है, और सत्ता के पास…

संसद में ऑपरेशन सिंदूर पर शाब्दिक महासंग्राम

पीएम नरेंद्र मोदी बनाम नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी – ट्रंप के नाम की भी गूंज ऑपरेशन सिंदूर पर बहस संसद से लाइव- भारत सहित पूरी दुनियाँ ने देखी-ट्रंप का 29…

चाइनीज मांझा: खुलेआम बिकती मौत की धार ……

डॉ. सत्यवान सौरभ हर शहर, हर गली, हर मोहल्ले में, जब बच्चे और किशोर पतंग उड़ाने निकलते हैं, तो उनका उद्देश्य केवल आसमान छूना होता है। लेकिन दुर्भाग्य से अब…

“100 किलोमीटर दूर की परीक्षा: क्या अभ्यर्थी की ज़िंदगी इतनी सस्ती है?”

“चुनाव में स्टाफ जाता है, परीक्षा में छात्र क्यों? रोज़गार की दौड़ में रास्ते ही कठिन क्यों?” सड़क हादसों में गई युवाओं की जान, कौन लेगा जिम्मेदारी?नौकरी की तलाश में…

लोकतंत्र या“लोकतंतर”-एक त्रुटि मात्र या गंभीर असावधानी?

-संसद परिसर में बैनर पर हुई स्पेलिंग मिस्टेक से छिड़ी नई बहस एक शब्द, एक भूल और बहस का विस्फोट संसद परिसर में आयोजित लोकतंत्र बचाओ आंदोलन के बैनर पर…

गिरती छतें, गिरती ज़मीर: झालावाड़ हादसा और हमारी व्यवस्था की नींव में छुपी मौत

प्रियंका सौरभ राजस्थान के झालावाड़ में एक सरकारी स्कूल की छत गिरने से मासूम बच्चों की मौत हो गई। इसे कुछ लोग “हादसा” कहेंगे, लेकिन असल में यह एक व्यवस्थागत…

विचार का क्षरण: भाषा, चिंतन और अभिव्यक्ति का संकट

विजय गर्ग आज हम तकनीकी रूप से सबसे अधिक जुड़े हुए युग में हैं, परंतु दुखद irony यह है कि हम अपने भीतर के सबसे मौलिक मानवीय गुणों से तेजी…