14 मई 2025 ………. वैदिक विश्व संचार दिवस

✍️ आचार्य डॉ. महेन्द्र शर्मा ‘महेश’

जिस प्रकार आधुनिक विश्व में संवाद और पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना गया है, उसी प्रकार सनातन परंपरा में संवाद, सूचना और सत्य का प्रथम स्तंभ देवर्षि नारद माने जाते हैं। ज्येष्ठ मास कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि को नारदजी का अवतरण हुआ था, और यह तिथि ‘वैदिक विश्व संचार दिवस’ के रूप में मनाई जाती है — एक ऐसा अवसर जब हम संवाद की उस परंपरा को स्मरण करते हैं जिसकी जड़ें स्वयं ब्रह्मा की सृष्टि से जुड़ी हुई हैं।

संवाद का दिव्य आद्य रूप

नारदजी कोई साधारण ऋषि नहीं, बल्कि सत्य, श्रद्धा और सृजन के दूत हैं। वह भगवान के मन हैं — और मन की गति तो वैसे ही अद्भुत होती है, पर नारदजी की गति तो उससे भी अधिक तीव्र है। आप जैसे ही गंगा का ध्यान करते हैं, मानसिक रूप से स्नान कर लेते हैं — उसी प्रकार नारदजी घटनाओं का न केवल साक्षात्कार करते हैं, बल्कि उन्हें आध्यात्मिक संदर्भों से जोड़ते हुए सम्पूर्ण ब्रह्मांड में संवादित भी करते हैं।

महाभारत के सभापर्व में नारदजी को वेदों, उपनिषदों, इतिहास, पुराणों, ज्योतिष, आयुर्वेद, नीतिशास्त्र और संगीत का मर्मज्ञ कहा गया है। वे त्रिकालदर्शी हैं, धर्म-अधर्म के निर्णायक, और ईश्वर के प्रमुख संवाद सूत्रधार।

नारदजी और पत्रकारिता का सनातन स्वरूप

आज हम संवाद को प्रेस कॉन्फ्रेंस या मीडिया स्टेटमेंट तक सीमित कर देते हैं, लेकिन नारदजी संवाद को धर्मसंस्थापन, ईश्वर की योजना और मानव कल्याण का माध्यम मानते हैं। उन्होंने रामायण हेतु वाल्मीकि जी को प्रेरित किया, और महाभारत हेतु व्यास जी को — क्या यह किसी संवाददाता की भूमिका से कम है?

नारदजी को यह भी वरदान मिला है कि वे कहीं अधिक समय तक न रुकें — ताकि पारदर्शिता बनी रहे और संवाद निष्पक्ष हो। यह अद्भुत है कि वे अपने संवादों के बाद अधिकतम एक मुहूर्त (48 मिनट) रुकते हैं — यह आज की पत्रकारिता के लिए भी एक गहन संदेश है।

आध्यात्मिक संवाद और सामाजिक समरसता

नारद जयंती केवल श्रद्धा का दिन नहीं, संवाद का भी पर्व है। इस दिन रूठे मित्रों व परिजनों से संवाद किया जाता है। राजा अपने प्रजा से सीधा संवाद करते हैं। विद्यार्थी अपने गुरुजनों से आशीर्वाद लेते हैं — यह सब नारदजी की संवाद परंपरा का जीवंत रूप है।

उनकी नवधा भक्ति की संकल्पना —
“श्रवणं, कीर्तनं, विष्णो: स्मरणं, पादसेवनम्, अर्चनं, वंदनं, दास्यं, सख्यं, आत्मनिवेदनम्” — संवाद के भीतर भक्ति, समर्पण और सेवा का ऐसा अद्वितीय सूत्र देती है, जो आज के संचार माध्यमों को भी आत्मा प्रदान कर सकती है।

निष्कर्ष

‘विश्व वैदिक प्रेस दिवस’ पर हमें नारदजी से यह प्रेरणा लेनी चाहिए कि संवाद केवल समाचार देना नहीं, बल्कि समाज को दिशा देना, धर्म को जागृत करना और जीवन को आलोकित करना है। नारदजी की परंपरा से जुड़कर हम पत्रकारिता को फिर से एक दिव्य, सृजनशील और कल्याणकारी मार्ग बना सकते हैं।

आज, जब सूचना विस्फोट का युग है, तब नारदजी की पारदर्शी, तटस्थ और धर्मसंगत संवाद परंपरा ही पत्रकारिता को मूल आत्मा प्रदान कर सकती है।
देवर्षि नारद को शत् शत् नमन।

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