नोबेल शांति पुरस्कार अभी 2025 की घोषणा हुई नहीं परंतु 2026 के लिए दावेदारी का कार्ड शुरू
वैश्विक पुरस्कार (नोबेल या कोई भी) पानें का हकदार वही है, जो खुद नहीं उसका काम बोले, उसे मांगना नहीं पड़े उसे देने की मांग उठे,पुरस्कार चलकर उसके पास आए
– एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी

गोंदिया महाराष्ट्र-वैश्विक स्तरपर नोबेल शांति पुरस्कार की घोषणा अभी 2025 के लिए नहीं हुई है, लेकिन 2026 के लिए नामांकन की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। इस बीच अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप फिर से सुर्खियों में हैं—इस बार नोबेल शांति पुरस्कार पाने की संभावित इच्छा और तेजी को लेकर।
पुरस्कार वही जिसके पीछे उसका कार्य बोले, न कि वह स्वयं बोले
वैश्विक सम्मान—चाहे वह नोबेल हो या कोई अन्य—उस व्यक्ति को मिलना चाहिए जो चुपचाप कर्म करता है, और जिसका काम इतना प्रभावशाली होता है कि पुरस्कार स्वयं उसके पास चला आए। यह सोच ही सच्चे सेवा भाव और विश्वशांति के मूल्यों की पहचान है। जैसा कि लेखक एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी (गोंदिया, महाराष्ट्र) का मानना है—“पुरस्कार पाने के पीछे दौड़ने के बजाय पुरस्कार को खुद आकर झुक जाना चाहिए।“
ट्रंप का नोबेल नामांकन: पाकिस्तान और अब इज़राइल की पहल
हाल ही में पाकिस्तान के बाद इज़राइल ने भी डोनाल्ड ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया है। लेकिन प्रश्न उठता है—क्या ट्रंप ने सच में शांति स्थापित करने के लिए ऐसा कोई कार्य किया है जिसकी मिसाल दी जा सके?
जबकि दुनिया भर में इज़राइल-हमास, रूस-यूक्रेन, भारत-पाकिस्तान, थाईलैंड-कंबोडिया जैसे कई क्षेत्र युद्ध या तनाव से जूझ रहे हैं, ऐसे में “शांति प्रयास” की हकीकत पर प्रश्नचिन्ह लगना स्वाभाविक है।
नोबेल पुरस्कार की मूल भावना क्या कहती है?
स्वीडन के वैज्ञानिक और डायनामाइट के आविष्कारक अल्फ्रेड नोबेल की वसीयत के अनुसार शांति पुरस्कार उस व्यक्ति को दिया जाना चाहिए,
“जिसने राष्ट्रों के बीच भाईचारे को बढ़ावा देने, स्थायी सेनाओं को समाप्त या सीमित करने, और शांति सम्मेलनों की स्थापना के लिए उल्लेखनीय प्रयास किए हों।”
इस मापदंड के आधार पर ट्रंप का कार्यकाल व नीतियाँ कितनी अनुकूल हैं—यह विश्लेषण का विषय है।
ट्रंप और नोबेल पुरस्कार: अब तक की कहानी
- ट्रंप को पूर्व में भी 2018, 2020 और 2021 में नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया जा चुका है।
- 2026 के लिए इज़राइल द्वारा किया गया नामांकन अब चर्चा में है।
- ट्रंप ने खुद कई बार सार्वजनिक मंचों से इस बात पर ज़ोर दिया है कि उन्हें यह पुरस्कार मिलना चाहिए।
- ट्रंप ने अपनी तुलना बराक ओबामा से करते हुए कहा था—“उन्होंने तो कुछ किया भी नहीं, फिर भी मिल गया!”
ट्रंप की हड़बड़ी के प्रमुख कारण:
- बराक ओबामा से तुलना:
ट्रंप को लगता है कि ओबामा को बिना ठोस योगदान के यह सम्मान मिला, जबकि उन्होंने (ट्रंप ने) कई शांति समझौतों की दिशा में कार्य किया। - छवि सुधारने की कोशिश:
ट्रंप के कार्यकाल की विदेश नीतियाँ विवादास्पद रही हैं। नोबेल पुरस्कार उन्हें ‘शांतिदूत’ की छवि प्रदान कर सकता है। - चुनावी राजनीति:
2026 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में यह सम्मान उन्हें एक मज़बूत नेता के रूप में पेश करने में सहायक हो सकता है। - अंतरराष्ट्रीय मान्यता:
ट्रंप यह मानते हैं कि उन्होंने वैश्विक संघर्षों में मध्यस्थ की भूमिका निभाई, और इस प्रयास को मान्यता मिलनी चाहिए।
ट्रंप की दावेदारी पर उठते सवाल और विवाद
हालांकि ट्रंप के समर्थक उन्हें “शांति स्थापित करने वाला नायक” बताते हैं, पर आलोचक यह प्रश्न उठाते हैं कि:
- क्या ट्रंप की विदेश नीति ने वास्तव में शांति को बढ़ावा दिया?
- क्या यह नामांकन राजनीतिक स्वार्थ की पूर्ति हेतु नहीं है?
- क्या यह सम्मान अब प्रचार का उपकरण बन रहा है?
निष्कर्ष: पुरस्कार की राह आसान नहीं, काम बोलना चाहिए
नोबेल शांति पुरस्कार पाने की चाह रखना अनुचित नहीं, परंतु इसके लिए प्रमाणित, स्थायी और निस्वार्थ कार्य होना चाहिए। ट्रंप की ओर से किया गया गुणा-भाग, प्रचार और स्वयं की पैरवी—इन सबसे पुरस्कार की गरिमा पर सवाल उठते हैं।
अतः,अगर हम उपयोग पूरे विवरण का अध्ययन करें इसका उद्देश्य विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि “नोबेल शांति पुरस्कार का असली हकदार वही है, जो इसके पीछे नहीं भागता, बल्कि जिसके पीछे खुद पुरस्कार दौड़ता है।”
संकलनकर्ता लेखक
क़ानूनी विशेषज्ञ | स्तंभकार | अंतरराष्ट्रीय चिंतक | साहित्यकार | कवि | सीए (एटीसी) | एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र