शिवशंकर तेरी महिमा निराली, विषमता पूर्ण सृष्टि सारी
आम है मीठा, फूल में खुशबू, करेला क्यों करवा री?

आचार्य डॉ. महेन्द्र शर्मा ‘महेश’

शिवरात्रि — एक ऐसा पर्व जो सिखाता है कि विषमता में भी समता संभव है।

जब हम जीवन में ईश्वर से जुड़ी कथाओं और चरित्रों के प्रति श्रद्धा और विश्वास रखते हैं, और उनसे प्रेरणा लेकर अपने जीवन में उन्हें उतारते हैं, तभी हमारा कल्याण होता है।

श्रावण मास की कृष्ण चतुर्दशी को मनाया जाने वाला शिवरात्रि पर्व न केवल भगवान शिव के प्राकट्य का उत्सव है, बल्कि यह हमें यह भी सिखाता है कि कैसे परिवार और समाज में मधुरता, प्रेम, स्नेह और सामंजस्य को बनाए रखा जाए।

शिव परिवार की जलहरी में समाहित वाहन—नंदी, सिंह, मोर, सांप, चूहा—सभी स्वभाव में परस्पर विरोधी हैं, फिर भी एकता का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। यह बताता है कि विषमता में भी समता संभव है — यही शिवरात्रि का सबसे सुंदर संदेश है।

जीवन की सार्थकता का प्रश्न
भारतीय संस्कृति और ईशावास्य उपनिषद के अनुसार, “जीवेम शरदः शतम्”, यानी 100 वर्षों तक जीने की कामना की जाती है। लेकिन महत्वपूर्ण यह नहीं कि हम कितने वर्षों तक जिए, बल्कि यह है कि हमने कैसे जिया?

क्या हमने ऐसा कोई कार्य किया जो आने वाली पीढ़ियों के लिए गर्व का विषय बने? क्या हमने कभी शून्य से आरंभ कर शतक तक पहुँचने की चुनौती को स्वीकार किया? जीवन का असली सौंदर्य इसी में है कि हम कठिनाइयों से न भागें, बल्कि उनका डटकर सामना करें।

सफल जीवन के दो मंत्र:

  1. भीड़ से अलग अपनी पहचान बनाएँ। आलोचनाओं की परवाह किए बिना अपने रिश्तों को संजोएँ। आलोचक को भी सम्मान दें, क्योंकि वही लोग बाद में आपकी सफलता का सबसे पहला जश्न मनाएंगे।
  2. कठिनाइयों से डरें नहीं, उनसे जूझें। यही कठिन क्षण जीवन को निखारते हैं।

आपका बंगला, गाड़ी, बैंक बैलेंस केवल आपके तक सीमित रहेंगे, लेकिन आपके रिश्ते और संबंध ही सच्चा वैभव हैं। सम्मान, प्रेम और स्नेह से भरे रिश्ते ही जीवन के तीर्थस्थल हैं।

रिश्ते: जीवन का असली मोक्ष
अपने माता-पिता, गुरु, भाई-बहन, बेटा-बेटी, दादा-दादी, सास-ससुर, बुआ-मामा, मित्र और समस्त पारिवारिक संबंधों को केवल नाम से नहीं, सम्मान और प्रेम से पुकारें। यही सच्चे अर्थों में जीवन का पूजन है।

यदि कभी संदेह या मतभेद हो, तो ‘आप की कसम’ फिल्म अवश्य याद करें — रिश्तों में जब संदेह पनपता है, तो जीवन में पछतावे के सिवा कुछ नहीं बचता।

इसलिए—Save Relations.
जब रिश्ते बचाने का समय आए, और निर्णय कठिन लगे, तब जानबूझ कर ज़ंग हार जाना ही असली जीत है। यही जीवन में सुख, संतोष और आनंद की राह है।

श्री शिव प्राकट्य महोत्सव पर हार्दिक शुभकामनाएँ।
कांवड़ जल कल प्रातः 4/41 से।

श्री निवेदन: श्री गुरु शंकराचार्य पदाश्रित
आचार्य डॉ. महेन्द्र शर्मा ‘महेश’, देवभूमि, पानीपत

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