“शिवमस्तु सर्वजगतां परहित निरता भवन्तु भूतगणा:।
दोषा परायन्तु शान्तिर्सर्वत्र सुखी भवतु लोका:॥”

, आचार्य डॉ. महेन्द्र शर्मा ‘महेश’, देवभूमि पानीपत

23 जुलाई 2025 – वर्तमान समय में जब पर्वों को केवल मनोरंजन का माध्यम मान लिया गया है, ऐसे में शिवरात्रि जैसे पर्वों का मर्म जानना और समझना अत्यावश्यक हो गया है। पौराणिक साहित्य, वेद-शास्त्रों और धर्म के मूलभूत सिद्धांतों की अनदेखी के कारण व्यवस्था में विकृति उत्पन्न हो रही है।

शिवरात्रि, शिव तत्व की उपासना का पर्व है। शिवपुराण के अनुसार शिव का जलाभिषेक कांवड़ जल से करने का विशेष अधिकार केवल कृषक को प्राप्त है। कृषक, जो सृष्टि का अन्नदाता है, श्रावण मास में जब इन्द्रदेव स्वयं वर्षा की कृपा करते हैं, तब वह खेतों की जिम्मेदारी ईश्वर पर छोड़ भगवान शिव की भक्ति में लीन होता है और पैदल चलकर कांवड़ जल लेकर तीर्थों से लौटता है।

हम सभी शिव को नित्य जल अर्पित करते हैं, परंतु कृषक का जलाभिषेक वार्षिक पुण्य कर्म है। उसके खेत-खलिहान ही देवस्थान हैं।

Save Relations शृंखला की पहली कड़ी में हमने बताया था कि यदि अपने से ही टकराव हो, तो स्वयं झुकने में ही रिश्तों की जीत होती है। यही परस्पर सम्मान और सौहार्द का मार्ग है, जिससे अवसाद नहीं होता, जीवन में एकता आती है और अध्यात्म की ओर मन मुड़ता है।

एक दृष्टान्त से यह स्पष्ट होता है—एक संस्कारी कन्या का विवाह एक धनाढ्य परंतु छद्म संस्कारी युवक से हो गया। कन्या ने भोजन के समय परिवार के साथ भोजन करने की विनती की, परंतु पति ने इसका विरोध किया और दुर्व्यवहार पर उतर आया। कन्या को संदेह हुआ और बाद में वह सच साबित हुआ—पति नशेड़ी निकला। विवाह विच्छेद हुआ। वर्षों बाद तीर्थ यात्रा में दोनों का आमना-सामना हुआ, कन्या अब सम्मानित वृद्धा थी, दो पुत्र और बहुएं उसकी सेवा में थीं, जबकि युवक अपमानित जीवन जी रहा था। यह शिक्षाप्रद परिणाम है कि धर्म, संस्कार और पारिवारिक एकता ही जीवन की धुरी हैं।

शिवरात्रि केवल उपवास, भजन या लंगर का आयोजन नहीं, बल्कि जीवन में अनुशासन, समर्पण और समरसता का संदेश देती है। दुर्भाग्यवश आज कुछ स्थानों पर कांवड़ यात्रा में हुड़दंग और असंयमित व्यवहार देखने को मिलता है, जो श्रद्धा और सेवा की भावना को ठेस पहुंचाता है।

श्रावण मास भगवान शिव को समर्पित है। ऐसे में अनुशासन और संयम की आवश्यकता अधिक है। हमें धर्म के मर्म को समझना होगा, तभी शिवरात्रि पर्व की सार्थकता बनी रहेगी।

पावन शिवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं।
कांवड़ जलाभिषेक का शुभ मुहूर्त कल सुबह 4:41 से प्रारंभ होकर पूरे दिन रहेगा। भगवान शिव नियमों से परे हैं, वे भाव के भूखे हैं।

– श्री निवेदन….. श्री गुरु शंकराचार्य पदाश्रित
आचार्य डॉ. महेन्द्र शर्मा ‘महेश’ देवभूमि पानीपत

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