रेबीज से मौतों पर सुप्रीम कोर्ट गंभीर – स्वतः संज्ञान लेते हुए याचिका दाखिल करने का आदेश
पूरे भारत की स्थानीय निकायों (नगरपरिषद, नगरपालिका नगर निगम महानगर पालिका)को पशु जन्म नियंत्रण (कुत्ते) नियम 2001 का सख़्ती से पालन करना समय की मांग
-एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं

गोंदिया महाराष्ट्र-भारत में आवारा कुत्तों के काटने से बच्चों और बुजुर्गों की जान जाना अब आम बात हो चुकी है। 28 जुलाई 2025 को सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने दिल्ली के रोहिणी क्षेत्र में 6 वर्षीय बच्ची की रेबीज से मौत की खबर पर स्वतः संज्ञान लिया। कोर्ट ने इसे “डरावना और परेशान करने वाला” करार देते हुए तत्काल याचिका दाखिल कर मुख्य न्यायाधीश के समक्ष पेश करने का आदेश जारी किया।
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट ने खोली आंखें
“City Hounded by Strays and Kids Pay Price” शीर्षक से टाइम्स ऑफ इंडिया के दिल्ली संस्करण में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, हर दिन सैकड़ों लोग आवारा कुत्तों के हमलों का शिकार हो रहे हैं। इनमें से अधिकांश बच्चे और बुजुर्ग होते हैं, जिन्हें रेबीज जैसी जानलेवा बीमारी हो जाती है।
6 साल की बच्ची की दर्दनाक मौत ने झकझोरा
30 जून 2025 को रोहिणी इलाके में एक रेबीज संक्रमित आवारा कुत्ते ने एक 6 वर्षीय बालिका को काटा। शुरुआत में उसकी हालत को सामान्य बुखार समझा गया, जिससे समय पर इलाज नहीं हो सका और 26 जुलाई 2025 को उसकी मौत हो गई। सुप्रीम कोर्ट ने इस खबर को पढ़कर स्वतःसंज्ञान लिया और कहा कि इस मामले में तत्काल कार्रवाई ज़रूरी है।
स्थानीय निकायों की लापरवाही बनी मौतों की वजह
लेखक एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया (महाराष्ट्र) का मानना है कि भारत के लगभग सभी शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में आवारा कुत्तों की संख्या बेतहाशा बढ़ रही है। स्थानीय निकाय जैसे नगरपरिषद, नगरपालिका, नगर निगम और महानगर पालिका इसके लिए प्रत्यक्ष रूप से ज़िम्मेदार हैं, लेकिन वे अपने दायित्वों का पालन नहीं कर रहे।
पशु जन्म नियंत्रण (कुत्ते) नियम 2001 का पालन आवश्यक
भारत सरकार ने पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 के तहत पशु जन्म नियंत्रण (Animal Birth Control – ABC) नियम, 2001 लागू किए थे। इसके अनुसार, बधियाकरण और टीकाकरण के माध्यम से कुत्तों की जनसंख्या और रेबीज को नियंत्रित किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार अब इन नियमों का कड़ाई से पालन अनिवार्य है।
संसद में भी उठ चुका है यह मुद्दा
22 जुलाई 2025 को संसद में पूछे गए प्रश्न के उत्तर में सरकार ने बताया कि पिछले वर्ष कुत्ते के काटने के कुल मामले 37,17,336 थे, और ‘संदेहास्पद मानव रेबीज मौतें’ 54 थीं। केंद्र सरकार ने नवंबर 2024 में सभी राज्यों को निर्देश भेजे कि स्थानीय निकायों के माध्यम से ABC कार्यक्रम को लागू किया जाए, ताकि बच्चों और बुजुर्गों की रक्षा की जा सके।
रेबीज क्या है और कैसे फैलता है?
रेबीज एक जानलेवा वायरल रोग है जो प्रायः संक्रमित कुत्ते की लार से फैलता है। इसके लक्षण काटने के 2–3 महीने बाद उभर सकते हैं और इसमें बुखार, सिरदर्द, गले में खराश जैसे शुरुआती संकेत होते हैं। यदि समय रहते टीका न लगाया जाए तो इसका कोई इलाज नहीं है, और यह 100% जानलेवा है।
कानूनी पहलू: अब सख्त धाराएं लागू
भारतीय न्याय संहिता (नया आईपीसी) में धारा 325 और 326 के तहत अब पशुओं को मारने या अपंग करने के अपराधों को शामिल किया गया है, चाहे उनकी कीमत कुछ भी हो। यह बदलाव दर्शाता है कि पशुओं की रक्षा के साथ-साथ मनुष्यों की सुरक्षा भी प्राथमिकता है।
पूर्व में भी सुप्रीम कोर्ट रहा है सजग
यह पहली बार नहीं है जब सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे को गंभीरता से लिया हो। 15 जुलाई 2025 को भी कोर्ट ने कुत्तों को भोजन कराए जाने के स्थानों पर चिंता जताई थी। कोर्ट का मानना है कि जानवरों के प्रति करुणा और इंसानी सुरक्षा के बीच संतुलन बनाए रखना जरूरी है।
कर्नाटक सरकार की पहल और बाकी राज्यों की जिम्मेदारी
कर्नाटक सरकार ने आवारा कुत्तों को भोजन प्रदान करने की योजना शुरू की है ताकि वे मानव बस्तियों में हिंसक न हों। अन्य राज्यों को भी चाहिए कि वे ऐसी योजनाएं बनाएं और उन्हें लागू करें।
निष्कर्ष: अब और देर नहीं, सख्त अमल जरूरी-उपरोक्त घटनाएं और आंकड़े यह स्पष्ट करते हैं कि आवारा कुत्तों से उत्पन्न खतरा अब जानलेवा बन चुका है। ऐसे में स्थानीय निकायों को जागना होगा और पशु जन्म नियंत्रण नियमों का सख्ती से पालन करना होगा। साथ ही, सामाजिक जागरूकता, सामूहिक प्रयास और कानूनी मजबूती ही इस संकट का हल हो सकते हैं।
संकलनकर्ता, लेखक, कर विशेषज्ञ, स्तंभकार, साहित्यकार, अंतरराष्ट्रीय लेखक, चिंतक, कवि, संगीत माध्यम सीए (एटीसी), एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र