Tag: किसान आंदोलन

राजनीति में अब चापलूसों की चौकड़ी में रहने के दिन लद गए — चौकन्नी हुई जनता …….

विधायक-सांसद और मंत्री को अब टैलेंट चौकड़ी में दिखना बेहतर रहेगा चापलूसी अस्त्र बनाम हुनर व योग्यता का अस्त्र अगर पल भर को भी मैं, बे-ज़मीर बन जाता, यकीन मानिए…

“कॉलर ट्यून की विदाई: जनता की सुनवाई या थकान की जीत?”

“कॉलर ट्यून को अलविदा कहा गया।” 6 दिन पहले प्रकाशित हुआ मेरा लेख — “कॉलर ट्यून या कलेजे पर हथौड़ा: हर बार अमिताभ क्यों? जब चेतावनी बन गई चिढ़” अमिताभ…

“आपातकाल की यादें नहीं, लोकतंत्र की चेतना चाहिए”: वेदप्रकाश विद्रोही

– भाजपा पर लगाए अघोषित आपातकाल, संविधान और संस्थाओं के फर्जीवाड़े का आरोप गुरुग्राम, 25 जून 2025 (भारत सारथि): आपातकाल की 50वीं बरसी पर जब देशभर में राजनीतिक बयानबाज़ी तेज…

दुर्घटना पीड़ितों के लिए “कैशलेस” उपचार : नीयत नेक, व्यवस्था बेकार

इस देश में जब कोई सड़क पर दुर्घटनाग्रस्त होता है, तो सबसे पहले यह नहीं पूछा जाता कि ज़ख्म कितना गहरा है — पहले यह पूछा जाता है कि “पहचान…

कॉलर ट्यून या कलेजे पर हथौड़ा: हर बार अमिताभ क्यों ?

प्रियंका सौरभ सरकार को समझना चाहिए कि चेतावनी सिर्फ चेतना के लिए होती है, प्रताड़ना के लिए नहीं। एक बार, दो बार, चलिए तीन बार — पर हर कॉल पर…

राजनीति या स्वार्थ सिद्धि? …….. जनता की आवाज़ गुम, दल के गीत गाने वाले जनप्रतिनिधि !

✍️ विशेष लेख: भारत सारथी / ऋषि प्रकाश कौशिक भारत जैसे लोकतांत्रिक राष्ट्र में राजनीति का उद्देश्य जनसेवा रहा है, लेकिन वर्तमान समय में यह सेवा का भाव तेजी से…

संकीर्ण जीवन-दृष्टि और टूटती नैतिक रीढ़

“जब जीवन का अर्थ सिर्फ संपत्ति रह जाए” डॉ. सत्यवान सौरभ “अच्छे जीवन” की जो धारणा आधुनिक समाज में बन रही है, वह भौतिक वस्तुओं, सामाजिक दिखावे और व्यक्तिगत उपलब्धियों…

HPSC बना ‘हेराफेरी सर्विस कमीशन’, भर्ती प्रक्रिया में गड़बड़झाले और नकल का अड्डा बन चुकी है हरियाणा सरकार: रणदीप सिंह सुरजेवाला

चंडीगढ़, 15 जून 2025। सांसद और कांग्रेस महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला ने हरियाणा लोक सेवा आयोग (HPSC) और नायब सैनी सरकार पर तीखा हमला करते हुए कहा कि HPSC अब…

श्रेष्ठता का संघर्ष: अपनी खूबियों को पहचानो, कमियों को देखने वाले बहुत हैं …….

“तू अपनी खूबियां ढूंढ, कमियां निकालने के लिए लोग हैं।”“अगर रखना ही है कदम, तो आगे रख, पीछे खींचने के लिए लोग हैं।” जिंदगी के नियम भी कबड्डी के खेल…

पुरस्कारों का सौदा: साहित्य के बाज़ार में बिकती संवेदनाएं

साहित्य आज साधना नहीं, सौदेबाज़ी का बाज़ार बनता जा रहा है। नकली संस्थाएं ₹1000-₹2500 लेकर ‘राष्ट्रीय’ और ‘अंतरराष्ट्रीय’ पुरस्कार बांट रही हैं। यह केवल साहित्य नहीं, भाषा की भी हत्या…